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________________ [18] सिरिजिणचंदररिविरइयं पंच न मुकार फल थुतं वंदित्तु वद्धमाणं जिणेसरं नियगुरुं च देवं च / 'पंचनमुकारफलं जहासुयं लेसओ भणिमो // 1 // भो भद्द ! भूरिभवभाविभीमभावारिवारविजईणं / अरहंताणं तह कम्ममलविसुद्धाण सिद्धाणं // 2 // आयारपालयाणं आयरियाणमह सुत्तदाईणं / उज्झायाणं सिवसाहगाण तह सह सवसाहूणं // 3 // निचं भव उज्जुत्तो समाहियप्पा पहीणकुवियप्पो / सिद्धिसुहसाहणम्मी नूण नमुक्कारकरणम्मि // 4 // 'जेणेस नमुक्कारो सरणं संसारसमरपडियाणं / कारणमसंखदुक्खक्खयस्स हेऊ सिपहस्स // 5 // कल्लाणकप्पतरुणो अवंझवीयं पयंडमायंडो। भवहिमगिरिसिहराणं पक्खिपहू पावभुयगाणं // 6 // आमूलुक्खणणम्मी वराहदाढा दरिदकंदस्स / रोहणधरणी पढमुब्भवंतसम्मत्तरयणस्स // 7 // अनुवाद श्रीवर्धमान जिनेश्वरने अने पोताना गुरु श्रीजिनेश्वरसूरिने तेमज देवने नमस्कार करीने पंचनमस्कारनुं फळ जेम सूत्रमा कयुं छे, तेम संक्षेपथी हुँ कहुं हुं // 1 // हे भद्र ! अनेक भवोमा थनारा अत्यंत भयंकर एवा भावशउना समुदाय उपर विजय 20 मेळवनार अरिहंतोने, कर्ममलथी अत्यंत शुद्ध थयेला सिद्ध भगवंतोने, आचारने पाळनारा आचार्य भगवंतोने, सूत्र आपनारा उपाध्याय भगवंतोने तथा शिवसुखना साधक सर्व-साधु भगवंतोने, सिद्धिसुखना साधनभूत एवा नमस्कारने करवामां समाहित अंतःकरणवाळो बनीने तथा कुविकल्पोनो. त्याग करीने निश्चयथी उद्यमशील था / 2 थी 4 // . कारण के, आ नमस्कार संसाररूपी समरांगणमां पडेला आत्माओने असंख्य दुःखोन-25 क्षय, कारण छे तथा शिव-पंथनो परमहेतु छे // 5 // वळी, ते कल्याण कल्पतरुनु अवंध्य-कदी निष्फळ न जाय एवं बीज छे, संसाररूपी हिम गिरिना शिखरोने ओगाळवा माटे प्रचंड सूर्य तुल्य छ / पापरूपी सर्पोने दूर करवा माटे गरुड 15 11°सुहं ले J / 2 चारिवि J / 3 अह। 4 जेणेव न°JI
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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