________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 361 "ॐ नमो श्रीगौतमस्वामिने सर्वलब्धिसंपन्नाय सर्वार्थसिद्धिं मम कुरु कुरु स्वाहा 3 / " "ॐ नमो वर्द्धमानाय उग्गए उग्गजसए जये विजये अपराजिए अपराजिओ भवामि स्वाहा 3 / " "ॐ नमो गौतमस्वामिने सर्वलन्धिसंपन्नाय सव्वट्ठसिद्धिं मम कुरु कुरु स्वाहा / " "ॐ श्री रौं रक्ष हरि रक्ष इलियं गिलियं हसौं हस्कलौं हसौँ हस 3 / / "ॐपक्षि स्वाहा।। "ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं / पद 5 / अशुचिः शुचिः भवामि स्वाहा / “ॐ नमो अरिहंताणं रौं रि(ह)दयं हरि हरि सरो हुं फट स्वाहा / नमो सिद्धाणं रौं रि (ह)दयं हरि हरि सरो हुं फट् स्वाहा / नमो आयरियाणं रौं रि(ह)दयं सिखाणं हरि हरि सरो हुं फट स्वाहा / नमो उवज्झायाणं री रि(ह)दयं हरि हरि सरो हुं फट् स्वाहा / नमो लोए सव्वसाहूणं क्षिप्रं सिद्धदुष्टं हटते वज्रते सूल आत्मरक्ष सर्वरक्ष हुं फट् स्वाहा // " मूलमन्त्रः। 10 "ॐक्षी Rs नमो अरिहंताणं / पद 5 / "ॐक्षः रः एसो पंचनमुक्कारो-मंगलं / इति महामन्त्रः "रक्ष रक्ष आपदं हन हन, संमदं उपनय उपनय, शत्रूणां स्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा // " [74 ] शुचिविद्या“ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, 15 ॐ नमो सव्वसाहूणं, ॐ नमो आगासगामिणीणं ॐ हः क्षः नमः // " शुचिविद्या // [75] आत्मरक्षामन्त्र:-"क्षि पॐ स्वा हा, हा स्वा ॐ पक्षि // " आत्मरक्षा // [76 ] सकलीकरणमन्त्रः"ॐ कुरु कुल्ले स्वा हा, हा स्वाल्ले कु रु कु ॐ // " सकलीकरणमन्त्रः / [77] दिग्बन्धनमत्र:"अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ॐ चण्ड हुं फट् स्वाहा // " दिग्बन्धः॥ [78 ] आत्मरक्षामन्त्रः-पञ्चपरमेष्ठिमुद्रां कृत्वा "ॐ अटेवय अट्ठसयं अटुसहस्सं च अट्टकोडीओ। रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिया सिद्धा // स्वाहा // "ॐथंमेह जलं जलणं चिंतियमित्तो वि पंचनवकारी। अरि-मारि-चोर-राउलघोरुवसग्गं पणासेउ // स्वाहा // "ॐ पन्नत्तीगंधारी-महाकाली-अप्पडिहय-रोहिणिया। वजंकुसि-वजसिंखला देवी माणसि-महमाणसिया // विजादेवीओ // अंबादेवी सिद्धाइयाओ सव्वसम्मद्दिट्ठिसमाहि [या]।.. वेयावच्च-संतिकरा देवा देवीओ मम रक्खंतु // स्वाहा // " आत्मरक्षामन्त्रः। एतदनन्तरं शङ्खमुद्रया नमस्कारत्रयभणनपूर्वकं बृहद्वर्धमानविद्या स्मर्यते। ततस्तर्जनीमुद्रया लघुवर्धमानविद्या चिन्त्यते // [79 ] अग्युत्तारणमत्रः"ॐ जूं ज्यूँ यूँ फट् स्वाहा, ॐ क्षॉ क्षीं क्षौं क्षः // " अग्युत्तारणमन्त्रः॥ [80] प्रत्यङ्गिराविद्या-"ॐ ही प्रत्यङ्गिरे मम स्वं स्वस्ति शान्ति कुरु कुरु स्वाहा॥" 35 [81 ] परविद्याच्छेदिनी प्रत्यङ्गिरामहाविद्या....."ॐ ही प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये केनचित् पापं कृतं कारितं अनुमतं वा नश्यतु तस्य हि तत्पा गच्छतु, ॐ ही प्रत्यङ्गिरे महाविद्ये स्वाहा // " परविद्याच्छेदिनी ......... .....[अ] "ॐ क्षेत्रपालाय स्वाहा, ॐ ब्रह्मकौशिकेय रक्ष रक्ष स्वाहा // ........ . . एतदनन्तर नमस्कारत्रयभणनपूर्वकं तर्जनीमुद्रया लघुवर्धमानविद्या चिन्त्यते / ततः पार्श्व- 40 नाथमुद्रयाँ पूर्वोक्त प्रत्यङ्गिरा विद्याद्वयं, तदनु 3.