SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 360 (6) कुवलयमालासंदभो। [प्राकृत अहवा भावेण विणा दव्वेणं पाविओ मए आसि / जाव ण गहिओ चिंतामणि त्ति ता किं फलं देइ // [ 279-23 ] ता संपइ पत्तो मे आराहेव्यउ मए पयत्तेणं / जइ जम्मण-मरणाणं दुक्खाणं अंतमिच्छामि // [279-24] 5 अथवा में ते नमस्कार भाव वगर द्रव्यथी (ज) प्राप्त कर्यो हशे; ज्यां सुधी ( आ नवकाररूप चिंतामणिने) 'आ चिन्तामणि छे,' एम समजीने ग्रहण न कर्यो होय त्यांसुधी ते शुं फळ आपे ? [279-23 ] तेथी, जो हुं जन्ममरणना दुःखोनो अंत इच्छतो होउं तो प्राप्त थयेल आ नमस्कार मारे प्रयत्नपूर्वक आराधवो जोईए // [279-24] परिचय ___ 'कुवलयमाला' ए प्राकृत चंपू काव्य छ / तेना रचयिता प्रकांड विद्वान 'दाक्षिण्य' चिह्नांकित आचार्य श्री उद्योतनसूरिजी छे। तेओए आ ग्रंथ वि. सं. 835 नी चैत्र कृष्ण चतुर्दशीए समाप्त को हतो / तेमने ही अने श्री देवीओ प्रसन्न हती। ग्रंथकारे ग्रंथना प्रारंभमां आचार्यशिरोमणि श्री हरिभद्रसूरिजी महाराजने भावपूर्वक अभिवादन कर्यु छ। 15 आ ग्रंथ 'सिंघी जैन ग्रंथमाला' तरफथी ताजेतरमा ज प्रकाशित थयो छ। आ कथानुं संक्षिप्त ( चार हजार श्लोक प्रमाण ) गद्यपद्यमय संस्कृत रूपान्तर श्री रत्नप्रभसूरिए कयुं छे। प्राकृत कथानुं प्रमाण तेर हजार श्लोक जेटलुं छे / ग्रंथनी रचनाशैली, यथास्थाने समुचित वाक्योनो विन्यास, प्रचुररसव्यक्ति, अनेक अलंकारो, प्रासंगिक कथाओ द्वारा सुंदर उपदेश अने 20 तत्त्वज्ञान- दान, प्रसन्न पद्यो वगेरे बधुं ज चमत्कारी छे / ग्रंथ श्रवणप्रिय अने हृदयहारी छ / प्राकृतभाषाना अभ्यासीओ माटे आ ग्रंथ अवलोकनीय छ। कथानो मुख्य उद्देश संसारनी विषमताने बताववानो छे / चरमभवपूर्वना पांचमा भवमां वर्तता रुद्रसोम, शांतिभट्ट, गंगादित्य, धनदेव अने व्याघ्रदत्त ए पांच प्रधान पात्रोथी आ कथा शरु थाय छे। तेओमांथी एकेक क्रमशः क्रोध, मान, माया, लोभ अने मोहथी प्रसित छे। सांसारिक 25 यातनाओने अनुभवता तेओ अंते संयम ग्रहण करे छ। पछीना देव वगेरेना भवोमां तेओ बधा साथे ज जाय छे अने परस्पर मळीने अन्योन्यने धर्म पमाडवाना प्रयत्नो करे छे। अंते चरमभवमा श्रमण भगवान श्री वर्धमानस्वामीना समयमा संयम लई सुंदर आराधना करी मोक्षे जाय छे / तेमांनो एक कुवलचंद्र राजकुमार छ / कुवलयमाला तेनी मुख्य राणी छे। ए बेनी कथाथी ग्रंथनो घणो भाग विभूषित छ। 30 प्रस्तुत ग्रंथमाथी पांच परमेष्ठिओना भाववाही काव्यने लईने अमे सानुवाद अहीं प्रगट करीए छीए।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy