________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 360(5) चारित्तं पि ण वट्टइ णाणं णो जस्स परिणयं किंचि / पंच-णमोकार फलं अवस्स देवत्तणं तस्स // [279-16 ] एयं दुह-सय-जलयर-तरंग-रंगंत-भासुरावत्ते / संसार-समुद्दम्मि कयाइ रयणं व णो पत्तं // [ 279-17 ] एयं अन्भुरुहुल्लं एयं अप्पत्त-पत्तयं मज्झ / एयं परम-भयहरं चोजं को(डु)टं परं सारं // [ 279-18 ] विज्झइ राहा वि फुडं उम्मूलिजइ गिरी वि मूलाओ। गम्मइ गयणयलेणं दुलहो एसो णमोकारो // [279-19 ] जलणो व्व होज सीओ पडिवह-हुत्तं वहेज सुर-सरिया / ण य णाम ण देज इमो मोक्ख-फलं जिण-णमोकारो // [279-20] 10 Yणं अलद्धउव्वो संसार-महोयहिं भमंतेहिं / जिण-साहु णमोकारो तेणज वि जम्म-मरणाई // [279-21] जइ पुण पुव्वं लद्धो ता कीस ण होइ मज्झ कम्म-खओ। दावाणलम्मि जलिए तण-रासी केचिरं ठाउ // [279-22] जेने अल्प पण चारित्र नथी अने अल्प पण ज्ञान परिणम्युं नथी तेने पण पश्चनमस्कारना 15 फळरूपे देवपणुं अवश्य मळे छे // [279-16] . सेंकडो दुःखरूपी जलचरथी उत्पन्न थयेला तरंगोना उछाळाथी देदीप्यमान आवर्तोवाळा संसाररूपी समुद्रमा ( नमस्काररूपी ) रत्न कदापि (पूर्वे अनादिकाळमां) प्राप्त थयुं नथी, ( अर्थात् . . जेम समुद्रमा रत्ननी प्राप्ति दुर्लभ छे तेम संसारमा नमस्कारनी प्राप्ति दुर्लभ छे)॥ [279-17 ] आ (अब्भुरुहुल्लं ? ) छे अने मने आ अप्राप्तनी प्राप्ति छ। आ परम भयहर छे, आ परम 20 अद्भुत छे, आ परम आश्चर्य छ, आ परम भंडार छे अने आ परम सार छ [ 279-18] स्पष्ट रीते राधावेध (पण ) करी शकाय छे, मूळमाथी पर्वतने (पण) उखेडी शकाय छे अने आकाशमार्गे पण जई शकाय छे; पण आ नमस्कार प्राप्त करवो दुर्लभ छ [ 279-19 ] कदाच अग्नि शीतळ थाय अने गंगानदी उलटा प्रवाहे वहे; पण आ श्रीजिननमस्कार मोक्षफळने न आपे एम न ज बने // [279-20] खरेखर (आ) संसाररूपी समुद्रमा भमता जीवोवडे श्रीजिनसाधुनमस्कार पूर्वे (कदी पण) प्राप्त करायो नथी तेथी ज हजु सुधी पण जन्ममरण (चालु) छे / [279-21 ] . जो पूर्वे आ (नमस्कार ) प्राप्त थयो होत तो मारा कर्मनो क्षय केम न थात ? दावानळ सळग्ये छते त्यां घासनो ढगलो केटलो वखत रही शके ? // [279-22] 25