________________ 10 360 (4) कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत जइ तइया विरमंतो तव-संजम-णाण-सोसियावरणो / णाणाण के पि णाणं पावेतो अइसयं एहि // [ 214-12 ] इय जे बालत्तणए मूढा ण करेंति कह वि सामण्णं / सोयंति ते अणुदिणं जराएँ गहियाहमा पुरिसा // [214-13] ता जइ कहं पि पावइ अहं पुण्णेण को वि आयरियो। ता पव्वयामि तुरियं अलं म्ह रजेण पावणं // [214-14 ] xxx एए जयम्मि सारा पुरिसा पंचेव ताण जोकारो। एयाण उवरि अण्णो को वा अरिहो पणामस्स / [279-12 ] सेयाण परं सेयं मंगल्लाणं च परम-मंगल्लं / पुण्णाण परं पुण्णं फलं फलाणं च जाणेजा // [ 279-18 ] एयं होइ पवित्तं वरयरयं सासयं तहा परमं / सारं जीयं पारं पुव्वाणं चोदसण्हं पि // [279-14] एवं आराहेउं किं वा अण्णेहिँ एत्थ कजेहिं / पंच-णमोकार-मणो अवस्स देवत्तणं लहइ // [ 279-15] 15 जो ते समये ( अविरतिथी ) अटक्यो होत तथा तप, संयम अने ज्ञान वडे कर्मनां आवरणो दूर कणं होत तो अत्यारे सर्वज्ञानोमां अतिशायि-चढियाता एवा कोईक ( अपूर्व ) ज्ञानने (केवलज्ञानने) पाम्यो होत // [214-12] ___ आ प्रमाणे बाल्यावस्थामां मूढ एवा जेओ कोईपण रीते श्रामण्य ( संयम ) ने करता (स्वीकारता) नथी ते अधम पुरुषो वृद्धावस्थाथी पकडाय ( जकडाय) छे अने प्रतिदिन 20 शोक करे छे / [214-13] माटे जो कोईपण रीते अमारां पुण्यथी कोई पण आचार्य भगवंत अहीं पधारे तो हुं शीघ्र प्रव्रज्या ग्रहण करूं; आ पापमय राज्यथी मारे सयुं // [ 214-14] जगतमां आ पांच ज पुरुषो साररूप ( उत्तम ) छे; (माटे) तेओने नमस्कार करूं छं। (लोकमां) प्रणामने योग्य एमनाथी चढियातो बीजो कोण छे ? // [279-12] 25 श्रेयोमा परमश्रेय, मंगलोमां परम मंगल, पुण्योमा परम पुण्य अने फळोमां (पण ) परम फळ आ (नमस्कार ज) छे एम जाणो / [279-13] आ पंचनमस्कार पवित्र छे, श्रेष्ठतर छे, शाश्वत छे, परम छे, वळी चौदे पूर्वोनो सार, आत्मा (स्वरूप-प्राण-रहस्य ) अने पार छ / [279-14] आनी ज आराधना करवामां तत्पर बनो, अन्य कार्यों करवाथी शं? पञ्चनमस्कारमा 30 मनवाळो आत्मा अवश्य देवपणाने प्राप्त करे छे / [279-15 ]