________________ 360 (2) कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत अम्हे उण णीसत्ता सत्ता विसएसु जोव्वणुम्मत्ता / परिवियलिय-सत्तीया तव-भारं कह वहीहामो // [213-31] पेम्म-मउम्मत्त-मणा पणट्ठ-लजा जुवाण-कालम्मि / संपइ वियलिय-सारा जिण-वयणं कह करीहामो // [213-32] सारीर-चलुम्मत्ता तइया अप्फोडणेक-दुल्ललिया / ण तवे लग्गा एहि तव-भारं कह वहीहामो // [213-33 ] अगणिय-कजाकजा रागद्दोसेहिँ मोहिया तइया / जिणवयमम्मि ण लग्गा एण्हि पुण किं करीहामो // [214-1] जइया धिईए वलिया कलिया सत्तीए दप्पिया हियए / तइया तवे ण लग्गा भण एहि किं करीहामो // [214-2] जइया णिहर-देहा सत्ता तव-संजमम्मि उजमिउं / ण य तइया उञ्जमियं एहि पुण किं करीहामो // [214-3] जइया मेहा-जुत्ता सत्ता सयलं पि आगमं गहिउं / ण य तइया पव्वइया एहि जड्डा य वड्डा य // [214-4 ] 15 अमे तो निःसत्त्व, विषयमां आसक्त, यौवनथी उन्मत्त, शक्ति वगरना, तपना भारने केम वहन करी शकीशु ? [213-31] यौवनकाळमां अमे प्रेम अने मदथी उन्मत्त मनवाळा अने लज्जा वगरना हता। हवे (अत्यारे ) अमारं सत्त्व चाल्युं गयुं छे तो जिनवचनने कई रीते अनुसरीशुं ? [213-32] त्यारे ( यौवनवयमां) शरीरना बळथी उन्मत्त थयेला अने मारपीट-भांगफोडमा ज मजा 20 माननारा अमे तपमां जोडाया नहीं तो हवे (ए) तपना भारने केम वहीशुं ? [213-38 ] कार्याकार्यनो विचार कर्या वगर रागद्वेषथी मोहित थयेला ते समये जिनवचनमां लीन न थया, तो पछी अत्यारे शुं करीशुं ? [214-1] ज्यारे धैर्यथी बळिया हता, शक्तिथी संपन्न हता अने हृदयथी दर्पवाळा हता ते समये ( पण ) तपमा लगनी न लागी, तो कहो अत्यारे शुं करीशुं ? [214-2] 25 जे वखते काया सशक्त (सहनशील) हती अने तप-संयममां उद्यम करवा अमे शक्तिमान हता ते वखते उद्यम न कर्यो तो अत्यारे शुं करीशुं ? [ 214-3] ___ज्यारे अमे बुद्धियुक्त हता अने सकल आगमने ग्रहण करवाने माटे समर्थ हता ते वखते पण प्रव्रज्या ग्रहण न करी ! हवे तो अमे (बुद्धिथी ) जड अने वृद्ध थया छीए, हवे शुं करीशुं ? [214-4]