________________ 360 कुवलयमालासंदभो। [प्राकृत * कइया वि हसिजंतो णिदिजंतो य मूढ-बालेहिं / सम-मित्त-सत्तु-चित्तो भमेज भिक्खं विसोहेंतो॥ [213-18 ] कइया खण-वीसंतो धम्मज्झयणे समुडिओ गुणिउं / रागद्दोस-विमुक्को मुंजे सुत्तोवएसेण // [213-19] कइया कय-सुत्तत्थो संसारेगत्त-भावणं काउं / सुण्णहर-भसाणेसुं धम्मज्झाणम्मि ठाइस्सं // [213-20] कइया णु कमेण पुणो फासु-पएसम्मि कंदरे गिरिणो / आराहिय-चउ-खंधो देहच्चायं करीहामि // [213-21] एय सत्त-सार-रहिओ चिंतेइ चिय मणोरहे णवरं / एस जिओ मह पावो पावारंभेसु उञ्जमइ // [213-22] धण्णा हु बाल-मुणिणो बालत्तणयम्मि गहिय-सामण्णा / 'अणरसिय-णिव्विसेसा जेहिं ण दिट्ठो पिय-विओओ // [213-23 ] धण्णा हु बाल-मुणिणो अकय-विवाहा अणाय-मयण-रसा / अहिट्ठ-दइय-सोक्खा पव्वजं जे समल्लीणा // [213-24] 15 क्यारे मूढ अने बाल (अज्ञ ) लोकोथी हसातो के निंदातो छतां पण शत्रु अने मित्रमा समान चित्तवाळो थईने भिक्षानी विशुद्धि माटे हुं भ्रमण करीश ? // [213-18 ] - क्यारे क्षण विश्राम लईने धर्मना अध्ययनोने गुणवामां समुत्थित (तत्पर थयेलो) एवो हुं सूत्रमा बतावेल विधि प्रमाणे रागद्वेषरहितपणे भोजन करीश ? // [ 213-19 ] क्यारे सूत्रार्थमां निपुण बनेलो एवो हुं संसारभावना, एकत्वभावमा वगेरे भावनाओ भावीने 20 भावित थईने शून्य घरो के श्मशानोने विषे धर्मध्यानमा स्थिर रहीश ? // [ 213-20] वळी क्यारे पर्वतनी गुफामां पासुक-शुद्ध (निर्जीव ) प्रदेशमां चतुस्कंधनी (?) आराधना (करीने ) पूर्वक देहनो त्याग हुं करीश ? // [ 213-21] सत्त्व अने बळथी विकल बनेलो ( वयोवृद्ध एवो) आ मारो पापी जीव आवी रीते केवल शुभ मनोरथो ज चिंतवे छे पण उद्यम तो पापारंभोमां ज करे छे॥ [213-22] 25 बाल्यवयमां जेमणे साधुपणुं ग्रहण कर्यु छे (अणरसिय-णिव्विसेसा ?)... अने जेओए प्रियवियोगने जोयो ज नथी एवा बालमुनिओने धन्य छे [213-23 ] जेओए विवाह को नथी, कामरसने जाण्यो नथी, स्त्रीसुखने देख्यु नथी अने संयमम सारी रीते लीन छे ते बालमुनिओने धन्य छे / / [213-24] 1 पाठांतर-अणरिसिय.