________________ 357 10 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / ललिय-वयणत्थ-सारं सव्वालंकार-णिवडिय-सोहं / अमय-प्पवाह-महुरं अण्णे कव्वं विइंतंति // [34-26 ] बहु-तंत-मंत-विजा-वियाणया सिद्ध-जोय-जोइसिया। अच्छंति अणुगुणेता अवरे सिद्धंत-साराई // [34-27 ] मण-वयण-काय-गुत्ता णिरुद्ध-णीसास-णिचलच्छीया / जिण-वयणं झायंता अण्णे पडिमा-गया मुणिणो // [34-28 ] अवि य कहिंचि पडिमा-गया, कहिंचि णियम-ट्ठिया, कहिंचि वीरासण-ट्टिया, कहिंचि उक्कुडयासण-ट्ठिया, कहिंचि गोदोहसंठिया, कहिंचि पउमासण-हिय त्ति / अवि य // इय पेच्छइ सो राया सज्झाय-रए तवस्सिणो धीरे। णित्थिण्ण-भव-समुद्दे रुदेण जिणिंद-पोएणं // [34-31] केइ पढंति सउण्णा अवरे पाटेंति धम्म-सत्थाई / अवरे गुणेति अवरे पुच्छंति य संसए केइ // [87-20] वक्खाणंति कयत्था अवरे वि सुरेंति के वि गीयत्था। अंबरे रएंति कव्वं अवरे झाणम्मि वटुंति // [87-21 ] सुंदर वचनो अने अर्थोना सारवाळा, सर्व अलंकारोथी जेनी शोभा थयेली छे एवा अने 15 अमृतना प्रवाह सम मधुर एवा काव्यने केटलाक मुनिओ गूंथे छे / [34-26 ] केटलाक अनेक मंत्रो, तंत्रो अने विद्याओना जाणकार, केटलाक योगमां निष्णात, केटलाक ज्योतिषमां सिद्ध अने सिद्धांतना सारने अनुगुणता मुनिओ त्यां विद्यमान छ / [34-27 ] मन, वचन अने कायानी गुप्तिथी गुप्त, श्वासने रोकीने अने स्थिर दृष्टिवाळा थईने (कुंभक प्राणायाम सहित नासाग्रदृष्टिवडे ) जिनवचननुं ध्यान करता केटलाक प्रतिमाधारी मुनिओ त्यां 20 छे // [ 34-28 ] वळी, क्यांक प्रतिमागत, तो क्यांक नियममा रहेला, तो कोई स्थळे वीरासने रहेला, तो कोई स्थळे उत्कुटुकासने रहेला, वळी कोई स्थाने गोदोहनिकासने रहेला अने कोई स्थाने पद्मासने रहेला मुनिवरो (त्यां ) छे / / आवी रीते ते राजाए स्वाध्यायमा मग्न, तपस्वी, धीर अने श्री जिनेश्वर भगवाननी (संयमरूप) 25 विशाळ नौका वडे भवसमुद्रना ( पारने ) किनाराने पामेला एवा साधु भगवंतो जोया // [34-31] केटलाक मुनिवरो शकुनशास्त्र भणे छे, बीजा धर्मशास्त्रोने भणावे छे, बीजा वळी धर्मशास्त्रोनो स्वाध्याय करे छे अने अन्य केटलाक संशयने पूछे छे // [ 87-20] बीजा केटलाक कृतार्थ ( विद्वान ) मुनिओ व्याख्यान करे छे, केटलाक गीतार्थो पण सांभळे छे, बीजा काव्यने रचे छे अने अन्य केटलाक ध्यानमा रहे छे // [87-21] 30 1 वळी बीजा एक प्रसंगे राजाए धर्मनंदन नामना आचार्यना मुनिओ जोया; त्यारनुं आ वर्णन छे.