________________ 356 कुवलयमालासंदब्भो। ___ [प्राकृत अण्णाइ य गणहर-भासियाइँ सामण्ण-केवलि-कयाई / पत्तेय-सयंबुद्धहिँ विरइयाइँ गुणेति महरिसिणो // [34-19] कत्थइ पंचावयवं दसह चिय साहणं परूवेति / पच्चक्खणुमाण-पमाण-चउक्कयं च अण्णे वियारेति // [34-20] भव-जलहि-जाणवत्तं पेम्म-महाराय-णियल-णिद्दलणं / कम्मट्ठ-गंठि-चजं अण्णे धम्म परिकहेंति // [34-21] मोहंधयार-रविणो पर-चाय(इ)-कुरंग-दरिय-केसरिणो / णय-सय-खर-णहरिल्ले अण्णे अह वाइणो तत्थं // [34-22] लोयालोग-पयासं दूरंतर-सह-वत्थु-पजोयं / केवलि-सुत्त-णिबद्धं णिमित्तमण्णे वियारंति // [34-28] ... णाणा-जीउप्पत्ती-सुवण्ण-मणि-रयण-धाउ-संजोयं / जाणंति जणिय-जोणी ( 1 ) जोणीणं पाहुडं अण्णे // [34-24] अहि-सय-पंजरा इव तव-सोसिय-चम्म-मत्त पडिबद्धा / आबद्ध-किडिगिडि-खा पेच्छइ य तवस्सिणो अण्णे // [34-25] 15 वळी, केटलाक महर्षिओ गणधरभाषित, सामान्यकेवलीकृत, प्रत्येकबुद्धरचित स्वयंसंबुद्धरचित सूत्रोने गुणे छे॥ [ 34-19] कोइ स्थळे पश्चावयव साधनने अने कोइ स्थळे दश प्रकारना साधनने ( तर्कने ) ( केटलाक मुनिओ) प्ररूपे छे, प्रत्यक्ष-अनुमान प्रमुख चार प्रमाणने केटलाक मुनिवरो विचारे छे / [34-20] भवसमुद्र तरवाने नौका समान, रागरूप महाराजाना बन्धनने तोडनार अने कर्मग्रंथिने 20भेदवा माटे वा समान एवा धर्मने अन्य मुनिवरो कहे छे-उपदेशे छे // [ 34-21 ] त्यां मोहांधकारने दूर करवामां सूर्य समान अने परवादीरूप मृगलांओनुं विदारण करनार सेंकडो नयरूपी तीक्ष्ण नखवाळा केसरी सिंह समान केटलाक वादीओ छ / [34-22 ] केवलिप्रज्ञप्त सूत्रोमां कहेल, लोकालोकने प्रकाश करनार, दूर अने अन्तरित एवी सूक्ष्म वस्तुओने पण प्रकाशित करनार निमित्तशास्त्रने ( केटलाक ) मुनिओ विचारे छे / / [34-23 ] 25 विविध जीवोनी उत्पत्तिनुं स्वरूप; सुवर्ण, मणि, रत्न अने धातुना संयोगनुं स्वरूप अने जन्मनी योनिओनुं स्वरूप जेमां छे एवा योनिप्राभृत आगमने केटलाक मुनिओ जाणे छे॥ [34-24] तषवडे शोषाई गयेल मांसना कारणे केवळ चामडुं ज जेमना देहपर रयुं छे एवा, कड कड एवो अवाज जेमना हाडकांओमाथी थया करे छे एवा केटलाक तपस्वी मुनिवरोने जाणे सेंकडो हाडकांना पिंजर न होय एवा ते जुए छे // [ 34-25 ]