________________ 355 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। स-समय-पर-समयाणं सूइजइ जेण समय-सब्भावं / सूतयडं सूयगडं अण्णे रिसिणो अणुगुणेति // [34-12] अण्णेत्थ सुट्टिया संजमम्मि णिसुणेति के वि ठाणंगं / अण्णे पढंति धण्णा समवायं सव्व-विजाणं // [34-13] संसार-भाव-मुणिणो मुणिणो अण्णे वियाह-पण्णत्ती / अमय-रस-मीसियं पिव वयणे चिय णवर धारेति // [34-14] णाया-धम्म-कहाओ कहेंति अण्णे उवासग-दसाओ। अंतगड-दसा अवरे अणुत्तर-दसा अणुगुणेति // [34-15] जाणय-पुच्छं पुच्छइ गणहारी साहए तिलोय-गुरू / फुड पण्हा-वागरणं पढंति पण्हाइ-वागरणं // [34-16] वित्थरिय-सयल-तिहुयण-पसत्थ-सत्थत्थ-अत्थ-सत्थाह(र)। समय-सय-दिहिवायं के वि कयत्था अहिजंति // [34-17] जीवाणं पण्णवणं पण्णवणं पण्णवेंति पण्णवया / सूरिय-पण्णत्ति चिय गुणेति तह चंद-पण्णत्ति // [34-18 ] जेनाथी खसमय (स्वदर्शन ) अने परसमय (परदर्शन )ना सिद्धांतोना रहस्यने सूचवायुं छे 15 एवा श्रीसूत्रकृतांग सूत्रनुं अन्य मुनिवरो अनुगुणन करे छे // [ 34-12] संयममा सुस्थित एवा बीजा केटलाक (धन्य) मुनिओ (ठाणांग) स्थानांग सूत्रने सांभळे छे, बीजा केटलाक धन्य मुनिओ सर्व विद्याओना समवायरूप श्रीसमवायांग सूत्रने भणे छे।[३४-13] संसारभावने जाणनारा अन्य मुनिवरो जाणे अमृतरसथी मिश्रित होय तेम (विवाहपण्णत्ति) व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती सूत्रने मुखमां (कण्ठमां) धारण करे छे (स्वाध्याय करे छे)॥ [34-14] 20 ___केटलाक ज्ञाताधर्मकथा अंगनी कथाओ कहे छे, अन्य मुनिवरो उपासकदशांगनुं अनुगुणन करे छे, बीजा अंतगडदशांगनुं अनुगुणन करे छे अने केटलाक अनुत्तरोपपातिकदशांगर्नु अनुगुणन करे छे // [34-15] ___ जाणकार सुज्ञ एवा श्रीगणधर भगवंते प्रश्नो पूछ्या अने त्रिलोकगुरु श्रीतीर्थकर परमात्माए उत्तरो आप्या, ते प्रश्नोत्तरस्वरूप प्रश्नव्याकरणसूत्रने केटलाक मुनिवरो भणे छे // [ 34-16] 25 केटलाक विद्वान मुनिवरो त्रणे भुवनना सकल प्रशस्त शास्त्रार्थोरूप अर्थने (मालने संग्रहनार) माटे सार्थवाहरूप अने सेंकडो सिद्धांतोथी युक्त एवा 'दृष्टिवाद'ने भणे छे // [34-17 ] जीवोनुं जेमा प्ररूपण छे एवा प्रज्ञापना सूत्रने प्रज्ञापक मुनिवरो प्ररूपे छ। केटलाक सूर्यप्रज्ञप्तिने अने ( केटलाक) चन्द्रप्रज्ञप्तिने गुणे छे / [34-18 ]