________________ 354 कुवलयमालासंदभो। [प्राकृत साहूण णमोकारो जइ लब्भइ मरण-देस-कालम्मि। चिंतामणि पि लद्धं किं मग्गसि काय-मणियाइं // [279-8] साहूण णमोकारो कीरंतो अवहरेज जं पावं / पावाण कत्थ हियए णिवसइ एसो अउण्णाण // [ 279-9] साहूण णमोकारो कीरंतो भाव-मेत्त-संसुद्धो। सयल-सुहाणं मूलं मोक्खस्स य कारणं होइ // [ 279-10] तम्हा करेमि सव्वायरेण साहूण तं णमोकारं। तरिऊण भव-समुदं मोक्खय-दीवं च पावेमि // [ 279-11] धम्म-महोवहि-सरिसे कम्म-महासेल-कढिण-कुलिसत्थे / खंति-गुण-सार-गरुए उवसग्ग-सहे तरु समाणे // [34-9] पंच-महन्वय-फल-भार-रेहिरे गुत्ति-कुसुम-चेंचइए। सीलंग-पत्त-कलिए कप्पतरू-रयण-सारिच्छे // [34-10] जीवाजीव-विहाणं कजाकज-फल-विरयणा-सारं / साधूण समायारं आयारं के वि झायति // [34-11] 15 जो (तने ) मरण वखते साधुओने नमस्कार (करवानु) प्राप्त थाय ( साधुवंदन मळे ) तो तो खरेखर चिंतामणि पण मळी गयु ! तो पछी काचमणिओने (तुं ) शुं शोघे छ ? // [ 279-8] ____ जे कारणे साधुने करायेलो नमस्कार पापने हरे छे (माटे) पुण्य वगरना पापीओना हृदयमां आ (साधुनमस्कार) क्याथी वसे ? [ 279-9] साधुओने भावमात्रथी करातो विशुद्ध नमस्कार सकल सुखनु मूळ अने मोक्षनुं कारण 20 छे // [279-10] माटे सर्व आदरपूर्वक ते (भाव) नमस्कारने हुं करुं छु, (जेथी) भवसमुद्रने तरीने मोक्षरूप द्वीपने प्राप्त करुं ! // [27-911] धर्मना महासमुद्र समान, कर्मरूपी महापर्वतने (भेदवा) माटे कठिन वज्रस्वरूप, क्षमागुणना सार वडे गौरववंत, उपसर्गाने सहन करवामां वृक्ष समान, तथा पांचमहाव्रतरूपी फलना 25 भार ( समूह )थी शोभता, गुप्तिरूप पुष्पोथी सुंदर अने ( अढार हजार ) शीलांगरूप पत्रोथी युक्त एवा श्रेष्ठ कल्पवृक्ष समान केटलाएक साधु भगवंतोजीव-अजीव- जेमां विधान छे एवा, कार्यअकार्यना फळनी विशिष्ट रचनाना सारवाळा अने साधुओनी समाचारीने कहेता ( एवा) श्री आचारांग सूत्रनुं ध्यान धरे छे (स्वाध्याय करे छे)॥ [34-9-10-11] me_101 1. 'कुवलयमालामा' पुरंदरदत्त नामनो राजा धर्मनंदन नामना आचार्यना दर्शनार्थे एक उद्यानमा जाय छे. त्या ते आचार्यना साधुओने तेणे जोया. त्यारर्नु आ वर्णन छे.