________________ 15 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 353 साहूण णमोकारं करेमि तिविहेण करण-जोएण / जेण भव-लक्ख-बद्धं खणेण पावं विणासेमि // [279-1] पणमह ति-गुत्ति-गुत्ते विलुत्त-मिच्छत्त-पत्त-सम्मत्ते। कम्म-करवत्त-पत्ते उत्तम-सत्ते पणिवयामि // [279-2] पंचसु समिईसु जए ति सल्ल-पडिपेल्लणम्मि गुरु-मल्ले / चउ-विकहा- पम्मुक्के मय-मोह-विवजए धीरे // [279-3] पणमामि सुद्ध-लेसे कसाय-परिवजिए जियाण हिए / छजीव-काय-रक्षण-परे य पा(परंपरं पत्ते // [279-4 ] चउ-सण्णा-विप्पजढे दढव्वए वय-गुणेहिँ संजुत्ते / * उत्तम-सत्ते पणओ अपमत्ते सव्व-कालं पि // [279-5] परिसह-बल-पडिमल्ले उयसग्ग-सहे पहम्मि मोक्खस्स / विकहा-पमाय-रहिए सहिए वंदामि समणे हं॥ [279-6] समणे सुयगे सुमणे समणे य पाव-पंकस्सऽसेवए / सवए सुहए समए य सच्चए साहु अह वंदे // [279-7] श्री साधु भगवंत त्रिविध करणयोग वडे साधुओने हुं नमस्कार करुं छु; जेथी लाखो भवोमां बांधेलु पाप क्षणमात्रमा नाश करूं // [279-1] मिथ्यात्वनो नाश करी सम्यक्त्वने पामेला अने त्रण गुप्तिथी गुप्त (एवा मुनिओने) नमस्कार करो, कर्म( रूप काष्ठ )ने कापवा माटे करवत(रूप संयम )ने पामेला मुनिओने हुं प्रणाम करं र्छ / [279-2] 20 - पांच समितिमां यतनावाळा, त्रण शल्यने पीलवामां महामल्ल समान, चार प्रकारनी विकथाथी सर्वथा मुक्त (रहित ), मद अने मोहथी रहित, धीर, शुद्धलेश्यावाळा, कषायथी वर्जित, जीवोने हितकर, छ जीवनिकायनी रक्षामां तत्पर अने परम पारने पामेला (अथवा परंपरागुणश्रेणीने पामेला मुनिओने ) हुं वंदन करुं छं // [279-3-4] चार संज्ञाथी दूर रहेला, दृढव्रतवाळा, व्रतना गुणोथी युक्त अने उत्तमसत्त्ववाळा एवा 25 अप्रमत्त (मुनिओने ) हुं सदाकाळ प्रणाम करुं छु / [279-5] मोक्षमार्गमा परीषहरूप सैन्यना प्रतिमल्ल, उपसर्गने सहन करनारा, विकथा अने प्रमादथी रहित अने हितयुक्त एवा श्रमणोने हुं वंदुं छं // [279-6] . वळी तपस्वी, भुतने अनुसरनारा, प्रशस्त मनवाळा, क्षमाश्रमण, पापपंकने नहीं सेवनारा, महाव्रतवाळा, सुख आपनारा (सुभग), शमवाळा अने सत्यने अनुसरनारा एवा साधु भगवंतोने 30 हुं वंदन करुं छु // [279-7] (?) 1 श्रीमहारथ मुनिनी कुवलयमालाग्रंथमा आवती अंतिम आराधनामाथी आ गाथाओ लीधेली छे.