________________ 352 कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत अज्झावयाण तेसि भई जे णाण-दसण-समिद्धा / बहु-भविय-बोह-जणयं झरंति सुत्तं सया-कालं // [ 278-28 ] अज्झावयस्स पणमह जस्स पसाएण सव्व-सुत्ताणि / णजंति पढिजंति य पढमं चिय सव्व-साधूहि // [ 278-29] उवझाय-णमोकारो कीरंतो मरण-देस-कालम्मि / कुगइं रुंभइ सहसा सोग्गइ-मग्गम्मि उवणेइ // [278-30] उवझाय-णमोकारो कीरंतो कुणइ बोहि-लाभं तु / तम्हा पणमह सव्वायरेण अज्झावयं मुणिणो // [278-31] उवझाय-णमोकारो सुहाण सव्वाण होइ तं मूलं / दुक्खखयं च काउं जीयं ठावेइ मोक्खम्मि // [ 278-32 ] सुय-सुत्त-गुणण-धारण-अज्झयणज्झायणेक्क-तल्लिच्छे / उवयार-करण-सीले वंदामि अहं उवज्झाए // [95-29 ] ज्ञान अने दर्शननी समृद्धिवाळा जेओ घणा भव्य आत्माओना बोधने उत्पन्न करनार सूत्रने सदाकाळ स्मरे छे (अध्ययन-अध्यापन करावे छे) ते उपाध्यायोनुं कल्याण हो. // [278-28 ] 15 जेमना प्रसादथी सर्व साधुओ सर्व सूत्रोने प्रथम जाणे छे अने भणे छे ते उपाध्यायने नमस्कार करो. // [278-29 ] ____ मरण समये उपाध्यायोने करातो नमस्कार कुगतिने एकदम रोके छे अने सद्गतिना मार्गमा लई जाय छे. // [278-30] उपाध्यायोने करातो नमस्कार बोधिलाभने ( सम्यक्त्वनी प्राप्तिने ) करे छे; माटे मुनिओने 20 भणावनार उपाध्यायोने तमे सर्व आदरपूर्वक नमन करो. // [ 278-31] उपाध्यायने नमस्कार सर्व सुखनुं मूळ छे, अने ते दुःखनो नाश. करीने जीवने मोक्षमा स्थापन करे छे. // [278-32] श्रुतज्ञानने गुणवू, धारण करवू, भणवू, भणावq-एमां ज तल्लीन, उपकार करवाना शीलवाळा उपाध्यायोने हुं बंदुं छु. (अथवा श्रुतज्ञानने गुणवानी, धारण करवानी, भणवानी अने 25 भणाववानी ज मात्र लेश्यावाळा अने उपकार करवामां परायण एवा उपाध्यायोने हुं वंदन करुं छु.)॥ [95-29 ] NCHEMEDIETIENENETICAENIOEMETE HEMSTEMSMENTURISMRIENOMINECURIOR ANAON O SILTO LETICIENCICHENDEN MEIEJSCHEUERERENESTE BIN