________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / तम्हा करेमि सव्वायरेण सूरीण हो(हु) णमोकारं / कम्म-कलंक-विमुक्को अइरा मोक्खं पि पावेस्सं // [278-28 ] णाणा-लद्धि-समिद्धे सुय-णाण-महोयहिस्स पारगए / आसण्ण-भव्व-सत्ते सव्वे गणहारिणो वंदे // [95-27] णाण-तव-विरिय-दंसण-चारित्तायार-पंच-वावारे / पजलियागम-दीवे आयरिए चेव पणमामि // [95-28 ] xxx उवझायाणं च णमो संगोवंग सुयं धरेताणं / सिस्स-गण-हियट्ठाए झरमाणाणं तयं चेय // [278-24] सुत्तस्स होइ अत्थो सुत्तं पाढेंति ते उवज्झाया। 10 अज्झावयाण तम्हा पणमह परमेण भावेण // [ 278-25 ] सज्झाय-सलिल-णिवहं झरंति जे गिरियड व्व तद्दियहं / अज्झावयाण ताणं भत्तीऍ अहं पणिवयामि // [278-26 ] जे कम्म-खयट्ठाए सुत्तं पाति सुद्ध-लेसिल्ला / ण गणेति णियय-दुक्खं पणओ अज्झावए ते हं // [278-27] 15 माटे सर्व आदरपूर्वक हुं आचार्यने नमस्कार करुं छु, (के जेथी ) अल्प समयमां कर्मकलंकथी विमुक्त थईने हुं मोक्षने पण पामुं. // [278-23 ] जुदा जुदा प्रकारनी लब्धिओथी समृद्ध, श्रुतज्ञानरूप सागरना पारने पामेला, निकटमां मुक्तिगामी एवा सर्व गणधरोने हुं वंदु छु. // [95-27 ] . अने ज्ञानाचार, तपाचार, वीर्याचार, दर्शनाचार अने चारित्राचाररूप पंचविध आचारना 20 व्यापारवाळा अने जेमनो आगमदीप प्रज्वलित छे एवा आचार्योने हुं प्रणाम करूं छु. [ 95-28 ] x x श्री उपाध्याय भगवंत_ अंग, उपांग सहित सूत्रने धारण करता अने शिष्यसमुदायना हितने माटे तेनुं स्मरण (पठन-पाठन ) करता श्री उपाध्याय भगवंतोने हुं नमस्कार करुं छु.॥ [278-24] 25 . सूत्रने अर्थ होय छे / ते उपाध्यायो सूत्रने भणावे छे / तेथी अध्यापन करावनारा उपाध्यायोने परमभावपूर्वक नमस्कार करो. // [ 278-25] ___स्वाध्यायरूपी जळममूहने गिरितटनी जेम जेओ प्रतिदिन झरावे छे (अर्थात् जेम पहाडमाथी सतत झरण वह्या करे छे तेम जेमनामांथी सतत स्वाध्यायझरण वह्या करे छे), ते अध्यापन करावनारा उपाध्यायोने हुं भक्तिपूर्वक नमन करुं छं. // [278-26 ] 30 ...शुद्धलेश्यावाळा जेओ कर्मक्षयने माटे सूत्रने भणावे छे, अने (भणाववामां) पोताना कष्ट (श्रमने ) गणकारता नथी, ते उपाध्यायने हुं नमन करुं छं. // [278-27 ]