________________ 350 कुवलयमालासंदभो। [प्राकृत बुद्धी-सिणेह-जुत्ता आगम-जलणेण सुट्ट दिप्पंता / कह पेच्छउ एस जणो सूरि-पईवा जहिं णत्थि // [278-15] चारित्त-सील-किरणो अण्णाण-तमोह-णासणो विमलो। चंद-समो आयरिओ भविए कुमुए व्व बोहेइ // [278-16] दंसण-विमल-पयावो दस-दिस पसरंत-णाण-किरणिल्लो / जत्थ ण रवि व्व सूरी मिच्छत्त-तमंधओ देसो // [278-17] उजोयओ व्व सूरो फलओ कप्पडुमो व्व आयरिओ। चिंतामणि व्व सुहओ जंगम-तिथं च पणओ हं // [ 278-18 ] जे जत्थ केइ खेत्ते काले भावे व सव्वहा अस्थि / तीताणागय भूया ते आयरिऐ पणिवयामि // [278-19 ] आयरिय-णमोकारो जइ लब्भइ मरण-काल वेलाए / भावेण कीरमाणो सो होहिइ बोहि-लाभाए // [278-20] . . आयरिय णमोकारो जह कीरइ तिविह-जोग-जुत्तेहिं / ता जम्म-जरा-मरणे छिंदइ बहुए ण संदेहो // [278-21] आयरिय-णमोकारो कीरंतो सल्लगत्तणं होइ / होइ णरामर-सुहओ अक्खय-फल-दाण-दुल्ललिओ // [278-22 ] ज्यां बुद्धिरूपी स्नेह( तेल )थी युक्त अने आगमरूपी अग्निथी ( ज्योतिथी ) सारी रीते दीपता आचार्यरूपी दीवा नथी त्यां आ लोक (जगतजनो) केवी रीते देखी शके ? // [278-15] चारित्र अने शीलरूपी किरणवाळो, अज्ञान-अंधकारना समूहने नाश करनारो, निर्मळ 20आचार्यरूपी चंद्र कुमुदनी जेम भव्योने विकसित करे छे (बोध पमाडे छे.)॥ [278-16] ज्यां दर्शनरूपी निर्मळ प्रतापवाळो अने दशे दिशामां प्रसरता ज्ञानरूपी किरणवाळो सूर्य समान आचार्य नथी ते देश मिथ्यात्वरूपी अंधकारथी सभर ( आंधळो) छे. // [278-17] आचार्य सूर्य समान उद्योतक ( उद्योत करनार ), कल्पद्रुमनी जेम ( वांछित ) फळ देनार छे, चिंतामणिनी जेम सुख देनार छे, ते जंगमतीर्थस्वरूप आचार्यने हुं नमस्कार करूं 25 छं.॥ [278-18] जे कोई (आचार्यो ) जे क्षेत्रमा, जे काळमां अने जे भावमां सर्व प्रकारे रहेला होय ते अतीत अनागत अने वर्तमान आचार्योने हुं नमस्कार करुं छं. // [278-19] जो मरणकाळ समये आचार्यने नमस्कार प्राप्त थाय तो भावपूर्वक करातो ते बोधि (सम्यक्त्व )ना लाभने माटे थाय छे. // [278-20] 30 त्रिविध योगयुक्त थईने जो आचार्यने नमस्कार करवामां आवे तो घणां जन्म, जरा, मरणने छेदे छे; एमां संदेह नथी. // [278-21] __ आचार्यने करातो नमस्कार शल्यने कापनार थाय छे, मनुष्य अने देवना सुखने आपनार थाय छे अने अक्षय फळ दानमां दुर्ललित (आग्रही') थाय छे.'॥ [278-22] 1 जो के मूलमा उपमालंकार छे, छतां अनुवादमां सरलतानी खातर रूपकालंकारनो प्रयोग करवामां आव्यो छे. 2 अवश्यमेव आपनार. 3 अथवा अक्षयफळने आपवामा निपुण होय छे,