________________ 349 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / पणमामि गणहराणं जिण-चयणं जेहिँ सुत्त-बंधेणं / बंधेऊण तह कयं पत्तं अम्हारिसा जाव // [278-7] चोद्दस-पुवीण णमो आयरियाणं तहूण-पुवीण / वायग-वसहाण णमो णमो य एगारसंगीण // [ 278-8 ] आयार-धराण णमो धरिजइ जेहिँ पवयणं सयलं / णाण-धराणं ताणं आयरियाणं पणिवयामि // [278-9] णाणायार-धराणं दंसण-चरणे विसुद्ध-भावाणं / तव-विरिय-धराण णमो आयरियाणं सुधीराणं // [278-10 ] जिण-चयणं दिप्पंतं दीवंति पुणो पुणो ससत्तीए / पवयण-पभासयाणं आयरियाणं पणिवयामि // [ 278-11] 10 गूढं पवयण-सारं अंगोवंगे समुद्द-सरिसम्मि।। अम्हारिसेहिँ कत्तो तं गजइ थोय-बुद्धीहि // [278-12] तं पुण आयरिएहिं पारंपरएण दीवियं एत्थ / जइ होति ण आयरिया को तं जाणेज सारमिणं // [278-18 ] सूयण-मेत्तं सुत्तं सइजइ केवलं तहिं अत्थो। जं पुण से वक्खाणं तं आयरिया पयासेंति // [278-14 ] श्री आचार्य भगवंत जेओए जिनेश्वर भगवानना वचनने सूत्रबंधनथी बांधीने एवं कर्यु के जे अमारा जेवा जीवो सुधी पहोंच्यु ते गणधरोने (आचार्योने ) हुं नमस्कार करुं छु. // [278-7] चौदपूर्वी तथा न्यूनपूर्वी आचार्योने नमस्कार करूं छु / वाचकवृषभ आचार्योने नमस्कार 20 करं छं / अगियार अंगना धारक आचार्योने नमस्कार करुं छु.॥ [278-8] आचारना धारक आचार्योने नमस्कार करूं छु / जेओ वडे सकल प्रवचन धारण कराय छे ते ज्ञानना धारक आचार्योने हुं नमन करुं . // [278-9] ज्ञानाचारने धारण करता, दर्शन अने चारित्रमा विशुद्ध भाववाळा, तप अने वीर्यने धारण करनारा तथा सारी रीते धीर एवा आचार्योने नमस्कार करुं . // [278-10] 25 देदीप्यमान जिनवचनने पोतानी शक्तिथी जेओ वारंवार प्रकाशित करे छे ते प्रवचनने दीपावनारा आचार्योने हुं नमन करूं छु. // [278-11] समुद्र समान अंग अने उपांगमा सिद्धांतना गूढ सारने अमारा जेवा अल्पबुद्धिवाळा क्याथी जाणी शके ? ( अर्थात्-प्रवचननो सार समुद्र समान अंग अने उपांगमां गूढ रहेलो छे; तेने अमारा जेवा अल्पबद्धिवाळा क्याथी जाणी शके ? ) तेने आचार्योए परंपराए अहीं सुधी ( अमारा 30 सुधी) प्रकाशित कर्यो छे / जो आचार्यों न होत तो आ सारने कोण जाणत ? // [278-12-18] सूचनमात्र करवाथी सूत्र कहेवाय छे; तेमां केवळ अर्थ- सूचन होय छे; पण ते विवरण जे छे ते तो आचार्यो प्रकाशित करे छे. // [278-14]