________________ 348 10 कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत दिव्वावहार-सिद्धा समुद्द-सिद्धा गिरीसु जे सिद्धा / जे केइ भाव-सिद्धा सव्वे तिविहेण वंदामि // [278-2] जे जत्थ केइ सिद्धा काले खेत्ते य दव्व-भावे वा। ते सव्वे वंदे हे सिद्ध तिविहेण करणेण // [ 278-8 ] सिद्धाण णमोकारो जइ लब्भइ आगए मरण-काले / ता होइ सुगइ-मग्गो अण्णो सिद्धिं पि पावेइ // [ 278-4 ] सिद्धाण णमोकारो जइ कीरइ भावओ असंगेहिं / रुंभइ कुगई-मग्गं सग्गं सिद्धिं च पावेइ // [278-5 ] सिद्धाण णमोक्कारं तम्हा सव्वायरेण काहामि / छेत्तूण मोह-जालं सिद्धि-पुरिं जेण पावेमि // [278-6] पजलिय झाण-हुयवह-कम्भिधण-दाह-वियलिय-भवोहा / अपुणागम-ठाण-गया सिद्धा वि जयंति भगवंता [95-26 ] देवता वडे अपहरण कराईने जेओ सिद्ध थया, जेओ समुद्रमा सिद्ध थया, जेओ पर्वतो उपर सिद्ध थया अने जे कोई भावसिद्धो थया ते सर्वेने हुं त्रिविध करणे वंदन करूं छु. // 15 [ 278-2] जेओ ज्यां कोईपण काळे क्षेत्रे द्रव्ये के भावे सिद्ध थया ते सर्व सिद्धोने हुं त्रिकरण वडे वंदन करूं छु.॥ [278-3] ___ मरणकाळ प्राप्त थये छते जो सिद्धोनो नमस्कार प्राप्त थाय तो य सद्गतिनो नवो मार्ग प्राप्त थाय के मोक्ष पण प्राप्त थाय. // [278-4] 20 जो असंगभावे सिद्धोने भावथी नमस्कार कराय तो कुगतिनो मार्ग रुंधाई जाय अने स्वर्ग अथवा मोक्ष प्राप्त थाय. // [278-5] माटे सर्वादरपूर्वक हुँ सिद्धोने नमस्कार करूं छु; ( करीश ) जेथी मोहजाळने छेदीने हुँ मुक्तिपुरीने पामुं. // [ 278-6] जेओए प्रज्वलित ध्यान-हुताशन वडे कर्मरूप इंधणने बाळी नाखवाथी भवोना समूहनो 25 नाश कर्यो छे, ज्यांथी फरी आववानुं नथी एवा स्थानने जेओ पाम्या छे ते सिद्ध भगवंतो पण जयवंता वर्ते छे. // [ 95-26 ] E