________________ 346 [प्राकृत कुवलयमालासंदब्भो। जय माया-रुसिय-महाभुयंगि तं णाग-मणि-सारिच्छा / जय लोह-महारक्खस-णिण्णासण-सिद्ध-मंत-समा // [268-15 ]. जय अरई-रइ-णासण ज(भ)य-णिजिय हास-वजिय जयाहि / / जयहि जुगुच्छा-मुक्का असोय जय जयसु तं देव // [268-16 ] जयहि ण-पुरिस ण-महिला णोभय जय वेय-वजिय जयाहि / सम्मत्त-मिच्छ-रहिया पंच-विहण्णाण-भय-मुक्का // [268-17 ] अजेव अहं जाओ अज य पेच्छामि अज णिसुणेमि / मगहा-रजम्मि ठिओ दटुं तुह वीर मुहयंदं // [268-18] तं णाहो तं सरणं तं माया बंधवो तुमं ताओ। सासय-सुहस्स मुणिवर जेण तए देसिओ मग्गो // [268-19 ] ___मायारूप रोषित महानागणनी प्रत्ये नागमणितुल्य, लोभरूप महाराक्षसनो सर्वथा नाश करवामां सिद्धमंत्र समान आप जयवंता वर्तो // [268-15] अरति अने रतिनो नाश करनारा, भयथी न जीतायेला ( भयरहित, जितभय ); हास्यथी रहित, जुगुप्साथी मुक्त अने शोकथी रहित हे देव ! आप जयवंता वर्तो // [268-16 ] 15 पुरुषवेदथी रहित, स्त्रीवेदथी रहित, नपुंसकवेदी रहित, ( अर्थात् ) वेदथी सर्वथा रहित आप जयवंता वर्तो। (क्षायोपशमिक के उपशम ) सम्यक्त्व अने मिथ्यात्वथी रहित पांच प्रकारना अज्ञान ( ? ज्ञानावरण ) अने भयथी मुक्त एवा आप जयवंता वर्तो // [268-17 ] __ हे वीर ! मगध राज्यमा रहेलो हुं आपना मुखचंद्रने जोईने आजे ज जन्म पाम्यो (आज पूर्वे गर्भावासमा हतो ) ! आजे ज हुं जोतो थयो (पूर्वे हुं आंधळो हतो) अने आजे 20 ज हुं सांभळतो थयो (पूर्वे हुं बहेरो हतो) // [ 268-18 ] तमे ज नाथ छो, तमे ज शरण छो, तमे ज माता छो, तमे ज बंधव छो, तमे ज पिता छो; कारणके हे मुनिवर ! तमे ज शाश्वत सुखनो मार्ग बताव्यो / (हे मुनिवर ! जे आप वडे शाश्वत सुखनो मार्ग बतावायो ते आप ज मारा नाथ छो, आप ज शरण छो, आप ज माता छो, आप ज बंधु छो अने आप ज पिता छो.)॥ [268-19 ] SOMETIKORE