SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 345 संसारम्मि असारे दुह-सय-संबाह-बाहिया जे य / मोत्तुं ताणं ताणं कत्तो वयणं जिणिंदाणं // [64-8 ] तओ एवं सब-जय-जीव-संघायस्स सव्व-दुक्ख-दुक्खियस्स तेलोक्केकल्ल-पायवाणं पिव जिणाणं आणं पमोतूण ण अण्णं सरणं तेलोक्के वि अस्थि त्ति / ___जर-मरण-रोग-रय-मल-किलेस-बहुलम्मि णवर संसारे / ___णत्थि सरणं जयम्मि वि एकं मोत्तूण जिणवयणं // [144-25] ...... 'इमम्मि णरयामर-तिरिय-मणुय-भव-भीम-पायालकलसे महाकोव-धगधगेंतकराल-जालाउल-वाडवाणले जर-मरण-रोग-संताव करि-मयर-जलयर-वियरमाण-दुरुत्तारे बहुविह-कम्म-परिणाम-खार-णीसार-णीर-पडहत्थे हत्थ-परियत्तमाण-संपत्ति-विवत्ति-मच्छ-पुच्छच्छडाभि-जमाण-तुंग-कुल-तरंग-भंगिल्ले राय-रोस-वेला-जल-पसरमाण-पवाहुम्मूलिजंत-वेला-10 वण-पुण्ण-पायवें संसार-सायरम्मि सिद्ध-पुरि-पावयं जाणवत्तं पिव भगवंताणं वयणं पावियं' ति / [145-26 to 30] जय दुञ्जय-मोह-महा-गइंद-णिदारणम्मि पंचमुहा / जय विसम-कम्म-काणण-दहणेक-पयाव-जलण-समा // [268-13] जय कोवाणल-पसमिय-विवेय-जल-जलहरिंद-सारिच्छा। 15 जय माणुद्धर-पव्यय-मुसुमूरण-पच्चला कुलिसा // [268-14] अने असार संसारमा जेओ सेंकडो दुःखोनी पीडाथी पीडाएला छे तेओने श्रीजिनवचन विना बीजे क्याथी रक्षण होय ? [64-8] माटे आ प्रमाणे सर्व दुःखोथी दुःखित एवा समस्त जगतना जीवसमूहने माटे त्रणे लोकमां अद्वितीय वृक्ष (आश्रयस्थान ) समान श्रीजिनेश्वर देवोनी आज्ञाने छोडीने अन्य कांई 20 पण शरण त्रणे लोकमां नथी / ज्यारे संसार जरा, मरण, रोग, रज, मळ अने क्लेशथी भरपूर छे त्यारे खरेखर जगतमां एक श्रीजिनवचनने छोडीने अन्य कोई शरण नथी // [ 144-25] - आ नारक, देव, मानव अने तिर्यंचभवरूप भयंकर पाताळकळशवाळा, महाक्रोधरूप धगधगता अने भयंकर ज्वाळाथी आकुल वडवानलवाळा, जरा मरण, रोग अने संतापरूप, जळहस्ति, 25 मगर, जलचरोना फरवाने कारणे मुश्केलीथी जेनो पार पमाय एवा अनेक प्रकारना कर्मपरिणामरूप खारथी निःसार जळना पटहस्तवाला ( ? विस्तारवाळा ), आवतीजती संपत्ति अने विपत्तिरूप मत्स्योना पुच्छनी छटाथी भेदातां मोटां कुलतरंगो (मोजां )ना भंगवाळा अने राग-द्वेषरूप भरती-जळना प्रसरता प्रवाहथी उखेडी नखाता काठाना बननां पुण्यरूप वृक्षो जेमा छे एवा संसारसागरमा मुक्तिनगरीने प्राप्त करावनार वहाण जेवू भगवंतनुं वचन प्राप्त कयुं / [ 145-26to30 ] 30 दुर्जय मोहरूपी महा गजेन्द्रनुं विदारण करवामां सिंह समान, विषम कर्मवनने बाळी नाखवामां अजोड प्रचंड तापवाळा अग्नि समान आप जयवंता वर्तो // [ 268-131 क्रोधरूपी अग्निने शांत करवामां विवेकजळथी भरेला श्रेष्ठ ( पुष्करावर्त ) मेघसमान, मानरूपी उंचा पर्वतना चूरेचूरा करवामां समर्थ वज्रसमान आप जयवंता वर्तो // [268-14]
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy