________________ 344 कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत जय पढम-पुरिस पुरिसिंद-विंद-णागिंद-वंदियच्चलणा / जय मंदरगिरि-गरुयायर-गुरुन्तव-चरण-दिण्ण-विण्णाणा // [116-15 ] णाह तुम चिय सरणं तं णाहो बंधवो वि तं चेव / दंसण-णाण-समग्गो सिव-मग्गो देसिओ जेण // [116-16 ] जे पिययम-गुरु-विरह-जलण-पञ्जलिय-ताव-तवियंगा / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-2] जे दूसह-गुरु-दारिद्द विदुया दलिय-सेस-धण-विहवा / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-3] दोगच्च-पंक-संका-कलंक-मल-कलुस-दूमियप्पाणं / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-4] सव्व-जण-णिदियाणं बंधु-जणोहसण-दुक्ख-तवियाणं / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-5 ] जे जम्म-जरा-मरणोह-दुक्ख सय-भीसणे जए जीवा / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-6] जे डहणंकण-ताडण-वाहण-गुरु-दुक्ख-सायरोगाढा / कत्तो ताणं ताणं मोत्तुं आणं जिणिंदाणं // [64-7 ] प्रथम पुरुष, चक्रवर्तिओना समूह तेमज नागेन्द्र वडे चरणमा नमस्कार कराएला (हे भगवन् ) आप जयवंता वर्तो / मेरुपर्वत करतां पण ( अधिक ) गुरुतावाव्य अने महा तप, चरण अने विज्ञानने आपनारा ( हे भगवन् ! ) आप जयवंता वर्तो // [116-15 ] 20 हे नाथ! तमे ज शरण छो, तमे ज नाथ छो अने बांधव पण तमे ज छो; के जेमणे दर्शन अने ज्ञानथी पूर्ण एवो मोक्षमार्ग उपदेश्यो छे // [ 116-16 ] जेमनां अंगो प्रियतमना मोटा विरहरूपी अग्निना प्रज्वलित तापथी तप्त छे तेमने श्रीजिनेश्वरनी आज्ञा (आगळ ) छोडीने बीजे क्याथी शरण होई शके ? [64-2] ___ जेओ दुःसह महादारिद्र्यथी दुःखी छे, सर्व धनवैभव जेमनो नाश पाम्यो छे एवा आत्माओ 25 माटे श्रीजिनेश्वरनी आज्ञा सिवाय अन्यत्र क्याथी रक्षण होय ? [64-3] _ 'दौर्गत्यरूप कादव, शंकारूप कलंक अने 'कर्ममलथी उत्पन्न थयेल कालुष्यथी दुःखित थयेल जीवोने श्रीजिनवचन सिवाय रक्षण क्यांथी होय ? [64-4] - सर्व लोकथी निंदाता, सगासंबंधीओना उपहासनी पीडाथी उत्तप्त जीवोने श्रीजिनवाणी सिवाय रक्षण क्याथी होय ? [64-5] 30 जे जीवो जन्म, जरा अने मृत्युना समूहरूप सेंकडो दुःखथी भयंकर एवा संसारमा रह्या छे तेमने श्रीजिनवचन सिवाय रक्षण क्याथी होय ? [64-6] जे दहन ( बाळबुं), अंकन (चिह्नो करवां), ताडन (भार), वाहन (वहन करावयु)-ए मोटा दुःखना समुद्रमां डूब्या छे तेओने श्रीजिनाज्ञा सिवाय बीजे क्याथी रक्षण होय ? [64-7] - 1 दौर्गत्य दुर्दशा अथवा दरिद्रता. 2 शंका-सम्यक्त्व प्रथम दूषण. 3 कर्ममल मोहनीय कर्म. . 4 कालुष्य= चित्तनी मलिनता.