________________ 342 कुवलयमालासंदब्भो। [प्राकृत अविरहिय-णाण-दसण-चारित्त-पयत्त-सिद्धि-वर-मग्गो। सासय-सिव-सुह-मलो जिण-मग्गो पायडो जयइ // [95-24] संसार-गहिर-सायर-दुत्तारुत्तार-तरण-कजेणं / तित्थ-करणेक्क-सीला सव्वे वि जयंति तित्थयरा // [95-25] जह आउराण वेजो दुक्ख-विमोक्खं करेइ किरियाए / तह जाण जियाय(ण) जिणो दुक्खं अवणेइ किरियाए // [179-19 ] जह चोराइ-भयाणं रक्खइ राया इमं जणं भीयं / तह जिणराया रक्खइ सव्व-जणं कम्म-चोराण // [179-20] जह रुंभइ वच्चंतो जणओ अयडेसु तरलयं बालं। जिण-जणओ वि तह चिय भव्वं रुंभे अकजेसु // [179-21 ] जह बंधुयणो पुरिसं रक्खइ सत्तूहि परिहविजंतं / तह रक्खइ भगवं पि हु कम्म-महासत्तु-सेण्णस्स // [179-22 ] जह जणणी किर बालं थणयच्छीरेण णेइ परियढेि / तह भगवं वयण-रसायणेण सव्वं पि पोसेइ // [179-28 ] बालस्स जहा धाई णिउणं अंजेइ अच्छिवत्ताई / इय णाण-सलागाए भगवं भव्वाण अंजेइ // [179-24] जेमा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रमा सतत पुरुषार्थ ए श्रेष्ठ सिद्धि( मोक्ष )मार्ग छे, अने जे शाश्वत कल्याण अने सुखनुं मूळ छे एवो आ जिनमार्ग साक्षात् जयवंतो छ // [ 95-24 ] गंभीर अने मुश्केलीथी तरी शकाय एवा संसारसागरनो पार पामवा माटे तरवाना प्रयोजनथी 20 तीर्थ करवाना अद्वितीय स्वभाववाळा सर्व तीर्थंकरो जयवंता वर्ते छे // [ 95-25] जेवी रीते वैद्य रोगीओने (चिकित्सादि) क्रिया वडे करीने दुःखथी छोडावे छे तेवी रीते श्रीजिनेश्वर भगवंत जीवोना दुःखने धर्मक्रिया वडे दूर करे छे, एम तमे समजो // [179-19 ] जेवी रीते भयभीत प्रजाने राजा चोरादिना भयथी रक्षे छे तेवी रीते श्रीजिनेश्वर भगवंतरूपी राजा सर्व जननुं कर्मचोरोथी रक्षण करे छे / [179-20] 25 जे प्रमाणे अंधारा कूवामां पडता चपळ बाळकने पिता रोकी राखे छे, ते प्रमाणे श्रीजिनेश्वर परमात्मारूपी पिता अकार्यमां पडता भव्य आत्माने रोकी राखे छे / [179-21] जे प्रमाणे शत्रुथी पराभव पामता पुरुष- बंधुजन रक्षण करे छे ते प्रमाणे कर्मरूपी महाशत्रुनी सेनाथी पराभव पामता जीवनुं श्रीजिनेश्वर भगवंत पण निश्चित रक्षण करे छे / [ 179-22 ] - to जे प्रमाणे माता बाळकने धावणथी पुष्ट करे छे ते प्रमाणे श्री जिनेश्वर भगवंत पण वचनरसायण वडे सर्वनुं पोषण करे छे // [ 179-23 ] . जे प्रमाणे धावमाता बाळकनी आंखनी पापणोने सारी रीते आंजे छे ते प्रमाणे श्री तीर्थकर भगवंत पण भव्योना आंतरचक्षुने ज्ञान शलाकाथी ( सळीथी ) आंजे छे // [ 179-24]