________________ विभाग] 18 नमस्कार स्वाध्याय / उज्झिय-रज्जे अहवा कुमारए दार-संगह-सणाहे / सावच्चे णिरवच्चे सव्वे तिविहेण वंदामि // [277-20] भव्वाण भव-समुद्दे णिबुड्डमाणाण तरण-कजम्मि। तित्थं जेहिँ कयमिणं तित्थयराणं णमो ताणं // [277-21 ] तित्थयराण पणामो जीवं तारेइ दुक्ख-जलहीओ। तम्हा पणमह सव्वायरेण ते चेय तित्थयरे // [277-22] लोय-गुरुणं ताणं तित्थयराणं च सव्व दरिसीणं / सव्वण्णूणं एयं णमो णमो सव्व भावेणं // [277-23 ] अरहंत-णमोकारो जइ कीरइ भावओ इह जणेणं / ता होइ सिद्धि-मग्गो भवे भवे बोहि-लाभाए // [277-24] अरहंत-णमोकारो तम्हा चिंतेमि सव्व-भावेण / दुक्ख-सहस्स-विमोक्खं अह मोक्खं जेण पावेमि // [277-25] जय सुरासुर-किंणर-मुणिवर-गंधव्व-णमिय-चलण-जुया / जय सयल-विमल-केवल-जिण-संघ णमोत्थु णं तुज्झ // [95-18 ] जइ देवो णेरइओ मणुओ वा कह वि होज तिरिओ हैं। सयल-जय-सोक्ख-मूलं सम्मत्तं मज्झ देजासु // [95-19 ] जेओए राज्यनो त्याग कयों छे अथवा जेओ कुमारावस्थामा छ अथवा जेओ बीसंग्रहथी युक्त छे अथवा जेओ संतानसहित छे अथवा जेओ संतानरहित छे ते सर्व तीर्थंकरोने हुं वंदन करुं हुं / [277-20] भवसमुद्रमां बूडता भव्य आत्माओने तरवा माटे जेओए आ तीर्थ स्थापन कयुं (प्रवर्ताव्युं) 20 ते तीर्थंकरोने हुं नमस्कार करुं कुं॥ [277-21] - तीर्थकरोने करेलो प्रणाम जीवने दुःखसमुद्रथी तारे छे; माटे तीर्थंकरोने सर्व-आदरपूर्वक प्रणाम करो // [277-22] ___लोक-गुरु एवा ते सर्वदर्शी अने सर्वज्ञ तीर्थंकरोने सर्वभावथी हुं वारंवार नमस्कार करुं छु / [277-23] ____ अहीं जीव वडे जो श्री अरिहंत प्रभुने भावपूर्वक नमस्कार कराय तो तेमांथी मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे अने ते भवोभवमां बोधिलाभ माटे थाय छे / [277-24 ] ___ तेथी सर्वभावपूर्वक अरिहंतना नमस्कारने हुं चितवु छु, के जेथी जेमां हजारो (सर्व) दुःखोथी सर्वथा मुक्ति छे एवा मोक्षने हुं पामुं॥ [277-25 ] देवो, दानवो, किन्नरो, मुनिवरो अने गंधर्वोथी नमन करायेला चरण-युगलवाळा (हे 30 अरिहंत ! ) आप जयवंता व” / हे संपूर्ण निर्मळ केवलज्ञानवाळा जिनसमूह ! तुं जय पाम! तने मारो नमस्कार हो // [ 95-18 ] - (हे देव! ) हुं देव, नारक, मनुष्य के तिर्यंच गमे ते थाउं ( तो पण ) जगतना सर्व सुखोनुं मूळ एवं सम्यक्त्व मने आपजो // [ 95-19 ] 25