________________ 340 कुवलयमालासंदभो। [प्राकृत ओसप्पिणि तह अवसप्पिणीसु सब्बासु जे समुप्पण्णा / तीताणागय-भूया सव्वे वंदामि अरहते // [ 277-12 ] भरहे अवर-विदेहे पुन्व-विदेहे य तह य एरवए / पणमामि पुक्खरद्धे धायइ-संडे य अरहते // [ 277-13] अच्छंति जे वि अन्ज वि गर-तिरिए देव-णरय-जोणीसु / एगाणेय-भवेसु य भविए वंदामि तित्थयरे // [ 277-14 ] तित्थयर-णाम-गोत्तं वेएंते बद्धमाण-बद्धे य / बंधिंसु जे वि जीवा अजं चिय ते वि वंदामि // [ 277-15 ] विहरंति जे मुणिंदा छउमत्था अहव जे गिहत्था वा / उप्पण्ण-णाण-रयणा सव्वे तिविहेण वंदामि // [ 277--16 ] जे संपइ परिसस्था अहवा जे समवसरण-मज्झत्था / देवच्छंद-गया वा जे वा विहरंति धरणियले // [277-17 ] साहेति जे वि धम्मं जे व ण साहेति छिष्ण-मय-मोहा / वंदामि ते वि सव्वे तित्ययरे मोक्ख-मम्गस्स // [ 277- 18] . तित्थयरीओ तित्यंकरे य सामे य कसिण-गोरे य / मुत्ताहल-पउमामे सव्वे तिविहेण वंदामि // [277-19] भूतकाळमां सर्व उत्सर्पिणीओ अने अवसर्पिणीओमां उत्पन्न थयेला अथवा भविष्यमां थनारा सर्व अरिहंतोने हुं वंदन करुं छु // [277-12] भरतक्षेत्रमा, पश्चिमविदेहमां, पूर्वविदेहमा; वळी ऐरवतक्षेत्रमा, पुष्कराधमां अने धातकी20 खंडमां रहेला तीर्थकरोने हुं वंदन करुं हुं // [277-13 ] जे वर्तमानकाळे मनुष्य, तिर्यंच, देव अने नारकयोनिमा रह्या छे अने एक के अनेक भवोमा तीर्थकर थवाना छे तेमने हुं वंदन करूं छु / [277-14] ___ जेओ तीर्थकरनामगोत्रने वेदे छे, बांधे छे, बांध्यु छे के बांधशे ते सर्व जीवोने पण हुं बाजे ज वंदन करूं छु॥ [277-15] 25 जे भावि तीर्थकरो अत्यारे छमस्थ मुनिपणे के गृहस्थपणे विचरे छे अथवा जेमने ज्ञानरत्न उत्पन्न थयुं छे ते सर्वेने हुँ त्रिविधे वंदन करुं छ / [277-16 ] जेओ अत्यारे पर्षदामां छे अथवा समवसरणना मध्यभागमा छे अथवा देवछंदामा रया छे अथवा पृथ्वीतल पर विचरे छे; जेओए मद अने मोहने छेद्या छे एवा जेओ धर्मनो उपदेश आपे छे अथवा नथी आपता ते सर्वे मोक्षमार्गना तीर्थकरोने हुं वंदन करूं छु / [277-17-18] 30 श्यामवर्णना, कृष्णवर्णना, गौरवर्णना, मुक्ताफल जेवा उजवल वर्णना, पद्म जेवा वर्णना सर्व तीर्थकरीओ अने तीर्थंकरोने हुं त्रिविधे वंदन करुं छु / [277-19 ] 1. श्याम काळो, कृष्ण-नील, गौर=सुवर्णवर्ण, मुक्ताफलसदृश श्वेत, पद्म जेबो रक्त.