________________ [17] कुवलयमालासंदब्भो अरहा जाणइ सव्वं अरहा सव्वं पि पासइ समक्खं / अरहा भासइ सञ्चं अरहा बंधू तिहुयणस्स / / [217-33 ]' अरहा भासइ धम्म अरहा धम्मस्स जाणए मेयं / अरहा जियाण सरणं अरहा बंधं पि मोएइ // [ 218-1] अरहा तिलोय-पुज्जो अरहा तित्थंकरो सुधम्मस्स / अरहा सयं पबुद्धो अरिहा पुरिसोत्तमो लोए // [ 218-2 ] अरहा लोग पदीवो अरहा चक्खू जयस(स्स) सव्वस्स / - अरहा तिण्णो लोए अरहा मोक्खं परूवेइ // [218-3 ] [एवं च वचंतेसु दियहेसु महारह-साधू वि णाऊण थोव-सेसं आउयं दिण्ण-गुरुयणालोयणो पडिकंत-सव्व-पावट्ठाणो संलेहणा-संलिहियंगो सव्वहा कय-सव्व-कायव्वो उवविट्ठो संथारए / तत्थ य णमोकार-परमो अच्छिउं पयत्तो / अवि य / ] एस करेमि पणामं अरहताणं विसुद्ध-कम्माणं / / सव्वातिसय-समग्गा अरहंता मंगलं मज्झ // [277-101 उसभाईए सव्वे चउवीसं जिणवरे णमंसामि / होहिंति जे वि संपइ ताणं पिकओ णमोकारो // [ 277-11 ] अनुवाद श्री अरिहंत भगवंत-अरिहंत बधुं जाणे छे, अरिहंत बधुं ज प्रत्यक्ष जुए छे, अरिहंत सत्य / भाषे छे अने अरिहंत त्रण भुवनना बंधु छे / [217-33 ] - अरिहंत धर्म कहे छे, अरिहंत धर्मना भेदने जाणे छे, अरिहंत जीवोने शरणरूप छे अने अरिहंत बंधनने छोडावे (मूकावे ) छे // [218-1] ... अरिहंत प्रण लोकने पूज्य छे, अरिहंत शुद्ध धर्मना तीर्थने करनारा छे, अरिहंत स्वयं संबुद्ध छे अने अरिहंत लोकमां पुरुषोत्तम छे / [218-2] ____ अरिहंत लोकप्रदीप छे, अरिहंत सर्व जगतना चक्षु छ, अरिहंत लोकमां तरेला छे अने अरिहंत 25 मोक्षने प्ररूपे छे॥[२१८-3] [ए प्रमाणे दिवसो जतां महारथ साधुए पण आयुष्य थोडं बाकी रह्यं छे एम जाणीने, गुरुमहाराज पासे आलोचना करी के, सर्व पापस्थानक, प्रतिक्रमण कयुं अने संलेखनाथी शरीरने संलेखित कयुं / एवी रीते समाप्त कर्यां छे सर्व कर्तव्यो जेणे एवा ते संथारामां बेठा / त्यां तेओ नमस्कारमा परायण थवा माटे उद्युक्त बन्या / (अने तेओ नीचे मुजब स्तवन करवा लाग्या:-)] 30 ... आ हुं विशुद्ध कर्म( प्रवृत्ति, अनुष्ठान )वाळा श्रीअरिहंत भगवंतोने प्रणाम करूं छं / सर्व अतिशयोथी परिपूर्ण श्रीअरिहंत देवो मने मंगळरूप हो / [277-10] - श्रीऋषभदेव वगेरे सर्वे चोवीशे जिनेश्वरोने हुं नमस्कार करूं छु / जेओ संप्रतिकाळमां वर्ते छे तेओने पण नमस्कार करुं छं। [277-11] 1 कौंसमां देवनागरी लिपिमा लखेल अंक मूळ ग्रंथर्नु पृष्ठ सूचवे छे अने रोमनलिपिमा लखेल अंक तेनी पंक्ति सूचवे छे / दा. त. पृष्ठ 217, पं. 33. 20