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________________ [प्राकृत 338 नमस्कारव्याख्यानटीका करीने आप्यु छे / आ सिवाय श्रीजिनप्रभसरि वगेरे आचार्योए रचेला स्तोत्रो, तिजयपहुत्त स्तोत्र अने तत्संबंधी मंत्रो, ज्वालामालिनी मंत्र वगेरे छे / वळी, नमस्कारने लगता केटलाक मंत्रो पण आ विभागमां संग्रहायेला छे, जे अन्यत्र प्रगट करेल छ / बीजा विभागमा 'नवकारसारथवण' नी जूदा क्रमे गाथाओ आपीने ते ते गाथाओनो शब्दार्थ 5न आपतां तेना आम्नायोनो संग्रह आप्यो छे, जे जूदा जूदा विषयो उपर प्रकाश पाडे छ / ए विषयोमां खास करीने विविध चक्रो, यंत्रिकाओ, चूडामणिशास्त्र, आयशास्त्र, पंचस्वरोदय, शरीर-स्वरोदय, नाडीशास्त्र, ज्योतिष, अर्धकांड, वैद्यकशास्त्र, जैनतत्त्वज्ञान, मंत्रो वगेरे अनेक विषयोनो संग्रह को छ / - आ विषयो ऊपर प्रकाश पाडवाने अमे केटलाक विद्वानोनो संपर्क साध्यो परंतु ए प्रयास संपूर्ण 10 सफळ थयो नहि / अमे स्वयं आ ग्रंथने ऊकेलवा-रहस्य पामवा प्रयत्न कर्यो पण स्तोत्रकारे जे रहस्य गूंथी दीधुं छे ते स्पष्ट थई शक्यु नहीं; आथी ए ग्रंथ जे स्वरूपे अमने मळ्यो छे ते स्वरूपे मूलरूपे प्रगट करवानो छेवटे निर्णय लीधो। आ टीकाग्रंथमा घणी अशुद्धिओ हती / बीजी एक प्रति मळी आवेली खरी, पण तेमांये तेवी ज अशुद्धिओ जोवामां आवी / आथी भाषानी दृष्टिए सुधारीने ए ग्रंथ जेवो ने तेवो अमे 15 अहीं प्रगट करीए छीए / संभव छे के एमां अनेक अशुद्धिओ रही जवा पामी होय / ___ आ टीकाग्रंथमा आवता 'सिद्धचक्रस्तोत्र' नी स्वतंत्र छ-एक प्रतिओ अमने मळी आवी ते उपरथी पाठभेदो लईने ए स्तोत्रने अमे अहीं प्रगट कर्यु छे / वळी, श्रीमल्लिषेणसूरिरचित 'विद्यानुशासन'मां जे 'सिद्धचक्रस्तोत्र' संस्कृतमा आपेलुं छे तेनी आ स्तोत्र साथे तुलना करतां तेनो आधार आ प्राकृत स्तोत्र होय एम लागे छे, तेथी ए स्तोत्र पण अमे टिप्पणीमां आपी दीधुं छे अने मूल स्तोत्रनो शब्द के 20 भाव लईने 'विद्यानुशासन'गत सिद्धचक्रस्तोत्रनी रचनामां जे साम्य लाग्यं तेने अमे मोटा टाईपो अने प्राकृत गाथाओना अंकनो निर्देश करवापूर्वक प्रगट कर्यु छ / आ टीकाग्रंथना कर्ता विशे माहिती मळी नथी।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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