________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 337 व्याख्या यदि यूयं स्वर्गपदं स्वर्गापवर्गमात्मनो ज्ञानं च इच्छत, तदा एतत् स्तवनं संभरत, पठत, ध्यात, नित्यं घोषयत अरहा( अर्हदा )दीन् पञ्चपरमेष्ठीन् नमत / कोऽर्थः ? एतस्मिन् स्तवने ध्याते सति आत्मनो ज्ञानमुत्पद्यते, भणितं च मोहत्यागे यदात्मानं, यस्यात्मनि वेत्ति यत्। तदात्मानमात्मना शानं, तच्च स्यात् शुद्धदर्शनम् // आत्मविज्ञानिनां दुःखं, तिर्यग-नारकसंभवम् / जन्तूनां हीयते शीघ्रं, शुद्धदर्शनलाभतः॥ . * ननु उवसग्गो पीडा कूरग्गहदसणं भयासंका। जइ वि न हु हुंति एए तह वि सगुल्झं भणिज्जासु // 30 // व्याख्या-ननु इति वितर्के / तिर्यग्-मनुष्य-देवकृत उपसर्गः, तथा व्याधि-दारिद्य-मानसीकृता 10 पीडा च, क्रूराहदर्शनं, भया अनेकविधास्तेषां आ ईषत् स्तोका, यद्यपि एते न भवन्ति, ततोऽपि सगुह्यं श्वेतध्यानं कर्तव्यमिति, एतावता आर्त-रौद्रनिषेधः // एसो परमो मंतो परमरहस्सो इमं तिहुयणम्मि / ता किमिह बहुविहेहिं पढिएहिं पुत्थयभरेहिं // 31 // व्याख्या-एषः परममन्त्रः, परमं गुह्यं त्रिभुवने निश्चयेन, किं बहुविधैर्नानाशास्त्रैः पुस्तकभारैः / 15 उक्तं च मुत्तूण बारसंग त एव समरणं कीरए जम्हा / अरिहंतनमोकारो तम्हा सो बारसंग त्ति // इति स्तवनं सारसमूहमेकत्रिंशद्भिर्गाथाभिः समुद्धृतं श्रीमानतुङ्गसूरिभिः प्रवचनरहस्यं संक्षेपात् // तथा एतासां व्याख्यानं, तथा टीका कृतेति // समाप्तेयं नमस्कारव्याख्यानटीका // परिचय 'नमस्कारव्याख्यानटीका' नामे रचायेला ग्रंथनी ह० लि. प्रति श्रीमुक्तिकमल जैन ज्ञानमंदिर, वडोदराथी अमने मुनिराज श्रीयशोविजयजी महाराज मारफत प्राप्त थई हती / आ टीका श्रीमानतुंगसूरिए रचेला 'नवकारसारथवण'मां प्रसिद्ध थयेल स्तोत्रने अनुलक्षीने रचवामां आवी छे एवं 25 जाणवामां आव्युं त्यारे हर्ष थयो / प्रथम क्षणे लाग्युं के श्रीमानतुंगसूरिए पोताना स्तोत्रमा जे अनेक विषयोनो संग्रह करीने 29 मी गाथामां जे प्रतिज्ञा करी छे तेनुं रहस्य आ टीकाग्रंथथी स्पष्ट थई जशे पण ए टीकाना अंतरंगमां ऊतरवानो अमे जेम जेम प्रयास करवा लाग्या तेम तेम ते टीका अत्यंत गूढ लागवा मांडी। अनेक विषयोना संग्रहथी भरेली आ टीका स्वयं विशिष्ट ग्रंथ जेवी जणाई। आ टीकाग्रंथनी प्रति 50 पानानी छे ने ग्रंथ बे विभागमां वहेंचायेलो छ / प्रथम विभागमां 30 'नवकारसारथवण' स्तोत्र मूलरूपे आपेलं छे / तेना पछी आ स्तोत्रने लगतो 'साधनविधिफल' नामे आम्नाय छे, जे 'पंचपदाम्नाय' शीर्षकथी प्रगट कयों छे अने तेना उपरथी एक कोष्टक पण तैयार 20