________________ 336 नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत व्याख्या-स्मरणमात्रमिदं तत्त्वं नाशयति सकलदुरितानि परं तत्त्वं पारम्पर्येण गुरुपरम्परया तथा प्रथमानुयोग-गणितानुयोग-द्रव्यानुयोग-चरणकरणानुयोगेभ्यस्तथा लौकिकशास्त्रसारमध्याच्च ज्ञानं, तन्नास्ति सुखं यदन्त इह मर्त्यलोकेऽपि न कुरुते, तत्त्वे प्रयुक्ते सति लब्धय उत्पद्यन्ते / तथा आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लमोसहि चेव। संभिन्नसोय उजुमइ सम्वोसहि चेव बोधव्वो // 1 // चारण-आसीविसा केवली य मणनाणिणो य पुव्वधरा।। अरिहंत चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा य // 2 // खीर-मह सप्पिरासव-कुट्रबुद्धी पयाणुसारी य / तह बीयबुद्धिन्तेयस-आहारग-सीयलेसा य // 3 // वेउब्वियलद्धी अक्खीणमहाणसी पुलाका य / परिणामतवसेणं एमाइ हवंति भणिय लद्धीओ // 4 // भवसिद्धि य पुरिसाणं एयाओ हवंति भणिय लद्धीओ। भवसिद्धि य महिलाणं जित्तिय जायंति तं वुच्छं // 5 // अरिहंत 1 चक्कि 2 केसव 3 बल 4 संभिन्ने य 5 चारण 6 पुव्वा 7 / गणहर 8 पुलाग 9 आहारगं 10 च नहु भविम(य)महिलाणं // 6 // अभवियपुरिसाणं पुण दल पुग्विल्लाउ केवलित्तं च / उज्जुमई विउलमई तेरस एयाउ न हु हुंति // 7 // असति-जिय महिलाणं पुण एयाओ हुंति भूयलद्धिंसु / महुखीरासवलद्धिओ नेया सेसाओ अविरुद्धा // 8 // 20 एतासां लब्धीनां सुखं करोतीत्यर्थः / पंचनवकारतत्तं लेसेणं संसिअं अणुहवेणं। सिरिमाणतुंग-माहिंदमुजलं सिवसुहं दितु // 28 // व्याख्या–पञ्चनमस्कारतत्त्वं श्रीमानतुङ्गसूरिभिस्तथा सुश्रावकमहेन्द्रसहितैः ब्राह्मणपाटके अनुभवः कृतः, ततः प्रकाशितम् , ततो यतीनां सावद्यानुभवं कर्तुं न युज्यते, ततः श्रावकयतीनां संयोगेनानुभव 25 उत्पद्यते, यत उक्तम् - शानं क्रियादिविरहितं शिवदं न दृष्ट, नापि क्रियां श्रुतमृते शिवशर्महेतुः। एतद् विचिन्त्य सुधिया द्वितीयेऽपि यत्नः, कार्यः प्रमादमदिरापरिवर्जितेन // 30 तथा संयोगेन पारत्रिकफलं स्यात् , ततस्तं गीतार्थसखाऽयं, दर्शितं मोक्षार्थे श्रीमानतुझं उच्चैःस्थं लोकाग्रस्थितं महेन्द्रं महाप्रधानं शिवसौख्यं दिशेत् // संभरह पढह झायह णिचं घोसेह णमह अरिहाइ / सग्गपयं जइ इच्छह तस्सेव य अत्तणो णाणं // 29 // .