________________ विमाग] नमस्कार स्वाध्याय। अथवा आचारो- ज्ञानाचारादिः पञ्चधा, आ-मर्यादया वा चारो-विहार आचारः, तत्र साधवः स्वयंकरणात् प्रभाषणात् प्रदर्शनाचेत्याचार्याः, आह च "पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासंता / ' आयारं दंसंता आयरिया तेण वुचंति // " अथवा आ- ईषद् अपरिपूर्णा इत्यर्थः चारा- हेरिका ये ते आचाराः, चारकल्पा इत्यर्थः, / युक्तायुक्तविभागनिरूपणनिपुणा विनेयाः, अतस्तेषु साधवो यथावच्छास्त्रार्थोपदेशकतया इत्याचार्याः, अतस्तेभ्यः / नमस्सता चैषामाचारोपदेशकतयोपकारित्वात् // 3 // 'णमो उवज्झायाणं ति / उप-समीपमागत्याधीयते 'ईङ् अध्ययने' इति वचनात् पठ्यते 'इणु गताविति वचनाद्वा अघि-आधिक्येन गम्यते, 'इक् स्मरणे' इति वचनाद्वा मर्यते सूत्रतो जिनप्रवचनं येभ्यस्ते उपाध्यायाः, यदाह 10 ___ अथवा ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार, वीर्याचार-आ पांच प्रकारना आचारने आचार कहेवामां आवे छे / अथवा मर्यादापूर्वक जे विहार करवामां आवे तेने आचार कहेवामां आवे छे / आ प्रकारना आचरने जेओ पोते पाळे छे, अर्थथी उपदेशे छे तथा क्रियाथी वीजाने करी बतावे छे ते आचार्य कहेवाय छे / (आवश्यकनियुक्तिमां) कयुं छे के–“पांच प्रकारना आचार पाळता, तेनो अर्थ कहेता तथा (पडिलेहण आदि क्रिया द्वारा) आचारने 15 दर्शावता होवाथी आचार्य कहेवाय छ / " . अथवा बीजी व्युत्पत्ति प्रमाणे आचार शब्दनो 'योग्य-अयोग्यनो विभाग करवामां निपुण शिष्यो' एवो अर्थ थाय छे / तेमने जेओ शास्त्रनो अर्थ यथावत् बतावे छे ते आचार्य कहेवाय छ। आवा आचार्य भगवंतोने नमस्कार हो / आचारना उपदेशकपणाने लीधे उपकारी होवाथी आचार्य भगवंतो नमस्कार करवाने योग्य छ / 20 णमो उवज्झायाणं' / उपाध्याय शब्दमां त्रण शब्दो छ / उप+ अधि+इ / आमां 'उप' एटले समीप / 'अधि' एटले आधिक्य / 'इ' धातुना त्रण अर्थ छे:-अध्ययन करवू, जर्बु (जाणवू) अने स्मरण करवू / अर्थात् जेमनी पासे जईने अधिकपणे जिनप्रवचन- सूत्रथी अध्ययन करवामां आवे छे, ज्ञान मेळववामां आवे छे अने स्मरण करवामां आवे छे तेओ उपाध्याय कहेवाय छ। (पावश्यकनियुक्तिमां) कडं ले के 25 1 आव० नि० गा० 994 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 152. 2 सर्वे गत्यर्थाः ज्ञानार्थकाः-गति अर्थवाची सर्व धातुओ ज्ञानना अर्थमां पण वपराय छ। एटले अहीं 'जर्नु नो अर्थ 'जाणवू समजवो।