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________________ भगवईसुत्तरस मंगलायरणं // [प्राकृत "बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहेहिं / ' तं उवइसति जम्हा उवझाया तेण वुच्चंति // अथवा उपाधानमुपाधिः-- सन्निधिस्तेनोपाधिना उपाधौ वा आयो-लाभः श्रुतस्य येषाम् , उपाधीनां वा–विशेषणानां प्रक्रमाच्छोभनानामायो- लाभो येभ्यः, अथवा उपाधिरेव-सन्निधिरेव 5 आयम् - इष्टफलं दैवजनितत्वेन आयानाम् - इष्टफलानां समूहस्तदेकहेतुत्वाद् येषाम् , अथवा आधीनां - मनःपीडानामायो-लाभ आध्यायः, अधियां वा- नत्रः कुत्सार्थत्वात् कुबुद्धीनामायोऽध्यायः 'ध्यै चिन्तायाम्' इत्यस्य धातोः प्रयोगान्ननः कुत्सार्थत्वादेव च दुर्ध्यानं वाऽध्यायः, उपहत आध्यायः अध्यायो वा यैस्ते उपाध्यायाः, अतस्तेभ्यः / नमस्यता चैषां सुसम्प्रदायायातजिनवचनाध्यापनतो विनयनेन भव्यानामुपकारित्वादिति // 4 // 10. णमो सव्वसाहणं' इति / साधयन्ति ज्ञानादिशक्तिभिर्मोशमिति साधवः, समतां वा सर्वभूतेषु ध्यायन्तीति निरुक्तिन्यायात् साधवः, यदाह - "जिनेश्वरे प्ररूपेली द्वादशांगीने पंडित पुरुषो स्वाध्याय कहे छे / (उपाध्याय भगवंतो) आ स्वाध्यायनो वाचनारूपे उपदेश आपता होवाथी उपाध्याय कहेवाय छ / " . अथवा ( उपाध्याय शब्दना बीजा पण अनेक अर्थो नीकळे छे, जेम के-) 'उपाधि' एटले 15 'संनिधि' / जेमनी संनिधिथी अथवा जेमना सांनिध्यमा रहेवाथी श्रुत ज्ञाननो 'आय' एटले लाभ * थाय अथवा जेमनी पासेथी उपाधि एटले सुंदर विशेषणोनो लाभ थाय तेमने उपाध्याय कहेवामां आवे छे / अथवा जेमनी उपाधि एटले जेमनुं सांनिध्य 'आय' एटले इष्ट फळोनां समूहमां कारणभूत छे ते उपाध्याय कहेवाय छे। अथवा बीजो पण अर्थ छ। 'आधि' एटले 'मननी पीडा' तेनो 'आय' एटले 'लाभ' ते 20 'आध्याय' / अथवा 'अधी' एटले 'कुबुद्धि' तेनो 'आय' एटले 'लाम' ते 'अध्याय' / अथवा 'अध्याय' एटले 'दुर्ध्यान' / आ 'आध्याय' तथा 'अध्याय' ने जेमणे उपहत कर्या छे ( अर्थात् हणी नाख्या छे) ते उपाध्याय कहेवाय छे / आवा उपाध्याय भगवंतोने मारो नमस्कार हो। __सुसंप्रदायथी (प्रतिष्ठित परंपराथी ) चाल्या आवता जिनवचन- भव्य जीवोने (अध्ययन कराववा) द्वारा विनीत बनावीने उपकार करता होवाथी उपाध्याय भगवंतो नमस्कारने योग्य छ / 38: णमो सवसाहणं / ज्ञान वगेरे शक्तिओथी मोक्षनी जे साधना करे छे ते साधु कहेवाय छे। अथवा सर्व प्राणीओ प्रति समभावनुं जे ध्यान करे छे ते साधु कहेवाय छे / (आवश्यकनियुक्तिमां) कयुं छे के 1 आव. नि. गा० 1.01 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 154.
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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