________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 323 मुनयो दक्षिणे पार्श्वे, ग्रहाश्चैवोत्तरे स्मृताः। भुवनान्यह्रियुग्मे च, भद्राद्या मूर्ध्नि संस्थिताः // 4 // मध्ये रवि-शशी शेयौ, सर्वकार्येषु योजयेत। नृपसहशिखाजारीलेपो मूर्ध्नि प्रियङ्करः // 5 // जारीकृष्णाञ्जलीगोरम्भाश्रुभिर्दक्षिणे तथा / अश्रुकन्या जटाविष्णुलेपने पादयोर्जयः // 6 // नरश्वेतार्कभीतार्के नृपतिभिर्वामलेपनात् / मोहपानाजवज्राभिर्मध्यलेपः श्रियङ्करः // 7 // एवं पञ्चाङ्गलिप्तेन, त्रिदशैरपि पूज्यते / नृपसहशिखाजारी, धूपितात्मा वशीकरः // 8 // कृष्णमोहागडूची हस्तानामुद्वर्त्तनं वशी। रविवज्राजगोरम्भा नागश्च सर्वकामदः॥९॥ नरजंटकुमार्यश्रुस्नानं सर्वप्रियङ्करम। नृपलजालुका मोहा, तिलकं मोहनं तथा // 10 // अजागोऽश्रुकुमारीभिः, लिङ्गलेपः सुखङ्करः / नृपलज्जाकरा जारी, चूर्ण वह्वेश्च रक्षणम् // 11 // भीताश्वेतार्कगोरम्भा, हस्ते चूर्णेन लेपनम् / देहस्य जलमध्यस्थः, स्वेच्छया तिष्ठति ध्रुवम् // 12 // नरश्वेतार्कगोरम्भा, रुदन्ती गुटिकामुखे / ....... // 13 // नृपसहजटाविष्णुलिङ्गलेपाद् भवेत् सुखम् / कन्याजटा करा भीता हस्तलेपा इमे जये // 14 // शिखाभूचम्पकार्कसहा गुटिका मुखे तथा / कृत्वा रात्रौ भवेन्नूनं निर्भयः सर्वजन्तुषु // 15 // करासहा जटागोभिर्योनिर्लेपात् सुतो भवेत् / लज्जारविशिखाकन्या, चूर्ण दत्तं च वश्यदम् // 16 // शिखागडूच्यजाकन्या, चूर्ण शत्रुदले क्षिपेत् / भङ्गो भवति तत्सैन्ये, एतद्योगप्रभावतः // 17 // विष्णुनृपगडूची मेषा, गुटिकायां मुखे शुभाम् / तुलादिव्येन चारूढो, ध्रुवं शुद्ध्यति दोषवान् // 18 // नृपतिनरभीतार्कलिङ्गलेपो हि द्राचको भवेत् / जटावज्रा सहा मोहा करलेपाच्च शीतलम् // 19 // फालं शिखा पानासहा मोहाचूर्ण वाणे(?) स्वके गुणे / निक्षिप्तं च परे सैन्ये स्तम्भो भवति निश्चितम् // 20 // पानाजाहस्तगोपादलेपाञ्च स्थलवजले। लजामोहार्कवज्राङ्गलेपाद् युद्धे जयो भवेत् // 21 // जटाशिखार्कहस्ता स्पर्शादाचरणकं वशम् / नृपवज्राजजारीभिः स्तम्भनं वर्षवारणम् // 22 // वज्रामोहाभुजारीणां चूर्ण भक्षापयेत् सुधीः। महावश्यं करोत्येवं दत्तं त्रैलोक्यमोहनम् // 23 //