________________ mm. विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 'अरिहंताणं' ति पाठान्तरम् , तत्र कर्मारिहन्तृभ्यः, आह च “अट्ठविहंपि य कम्मं अरिभूयं होइ सयलजीवाणं / तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण वुच्चंति // " 'अरुहंताण' मित्यपि पाठान्तरम् , तत्र 'अरोहद्भयः' अनुपजायमानेभ्यः, क्षीणकर्मबीजत्वात् , आह च "दग्धे बीजे यथात्यन्तं प्रादुर्भवति नाङ्कुरः। कर्मबीजे तथा दग्धे न रोहति भवाङ्कुरः॥" नमस्करणीयता चैषां भीमभवगहनभ्रमणभीतभूतानामनुपमानन्दरूपपरमपदपुरपथप्रदर्शकत्वेन परमोपकारित्वादिति // 1 // 'णमो सिद्धाणं ति / सितं-बद्धमष्टप्रकारं कर्मेन्धनं ध्मातं-दग्धं जाज्वल्यमानशुक्लध्यानानलेन 10 यैस्ते निरुक्तविधिना सिद्धाः / अथवा 'पिधु गतौ इति वचनात्, सेधन्ति स्म-अपुनरावृत्त्या ___ अथवा 'अरहताणं ने बदले. 'अरिहंताणं' एवो पाठ पण मळे छ / 'कर्मरूप शत्रुओने हणनारा अरिहंत भगवानोने नमस्कार थाओ' एवो अर्थ त्यां समजवो। ( आवश्यकनियुक्तिमां ) का छे के-"आठ प्रकारनुं कर्म ज सर्व जीवोने शत्रुरूप छे; ते कर्मरूपी शत्रुनो नाश करे छे तेथी अरिहंत कहेवाय छ / " 15 _ 'अरहताणं' ना बदले 'अरुहंताणं' एवो पाठ पण मळे छे। 'जन्म नहि लेता' एवो ए पाठनो अर्थ छे; कारणके कर्मरूपी बीज क्षीण थई गयां होवाथी भगवान फरीथी जन्म लेता नथी। का छे के-'जेम बीज अत्यंत बळी जाय त्यारे अंकुरो प्रगट थतो नथी तेम कर्मरूपी बीज बळी जवाथी संसाररूपी अंकुरो उत्पन्न थई शकतो नथी।" संसाररूपी भयंकर अटवीमां भ्रमण करवाथी भय पामेला प्राणीओने अनुपम आनंदरूप 20 परमपदरूपी नगरना मार्गने दर्शवनारा होवाथी अरिहंत भगवंतो परम उपकारी छे अने तेथी तेओ नमस्कारने योग्य छ। ___णमो सिद्धाणं / सित' एटले बांधेलं जे आठ प्रकारनुं कर्मरूपी इंधण जेमणे 'ध्मात' एटले जाज्वल्यमान शुक्लध्यानरूपी अग्निथी बाळीने भस्मीभूत कयुं छे ते सिद्ध कहेवाय छे / आ प्रमाणे 'सिद्ध' शब्दनो 'निरुक्तविधि' थी अर्थ थाय छे / 25 अथवा 'षिध्' धातुनो 'गति' एवो अर्थ थाय छे एटले गया पछी कदी पाछा फरवु न पडे तेवी रीते जेओ मोक्षनगरीमां गया छे तेओ सिद्ध कहेवाय छ। 1 आव. नि. गा. 920 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 132. 2 तत्त्वार्थसूत्रनी अंतिम कारिकाओमा 8 मी कारिका. ३"षिध गत्याम्"-पाणिनीयधातुपाठः 48. .