________________ 308 . नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत प्राकृत तथा रोमकं दरं दृष्ट्वा, श्वेतपक्षं च वायसम् / .. रात्रौ चेन्द्रधनुषं [वा ? ], देशभङ्गं विनिर्दिशेत् // 5 // तथा वराह वारिनिविट्ठा पायारे संठिया अट्ट / तह मज्झेव य अट्टा पुर नाम णक्खत्तयं आइ // 1 // जइ बाहिरम्मि सूरो अह सूरसुओ बीयओ होइ / होहुंति अरिमज्झा बाहिरा णीएसु हता // 2 // कूरे मज्झि पइट्टे सणि-राहू-सूर-भूम आकंते। को तं रक्खइ नयरं तियसनाहो वि भजंतं // 3 // अश्विन्यादितृतीयं तु, वारौ शनि-गुरू तथा / जया-रिक्तातिथौ घातः, क्रियते स्वचिरे गणे // 4 // मेघस्य वृष्ट्यवृष्टिलक्षणम् मूलादिरविपक्क्या तथाऽऽ दिनवकैर्भवेत् / वर्षा च शीत-उष्णं तु परं गर्भे विपर्यये // 1 // संक्रान्तिदिनगनक्षत्रानादौ कृत्वा च चन्द्रजान् / स्वकीयचेष्टया गर्भः पाश्चात्यया वसन्तः // 2 // जलं घर्षति वाऽऽदित्यो, हिमं वर्षति चन्द्रमाः। चन्द्रादित्यौ बुधैझैयौ, शास्त्रदृष्टेन कर्मणा // 3 // 20 ये 26, जे 10, खे 2, टे 11, जे 8, गे 3, ता 16' ऽमिः / के 1, छे 7 ढे 14, दु 5, णे 15, ड 13, वामे 25, झे 9, ने 20, ले 28, ध 19, चे 6, रे 27, वा थे 17, मे 24, पे 21, वे 23, घ 4, वा 18, मा // 4 // अमि-वायव्य-वारुण-माहेन्द्रमण्डलानि, एषु भूकम्पो रजोवृष्टिः, दिग्दाहोऽकालवर्षणम् / इति चाकस्मिकं सर्वमुत्पातान् परिकीर्तयेत् // 5 // उत्पातोऽपि माहेन्द्र-चारुणे मण्डले च यः। वायव्येऽग्नौ च भङ्गः स्याद् , गर्भस्य कालचिन्तकैः // 6 // चैत्रस्यादौ दिवसदशकं कल्पयित्वा क्रमेण, __ स्वात्यन्यााप्रभृतिदशकं वृष्टिहेतोर्विलोक्यम् / यावत्संख्यं भवति नियतं दुर्दिनं वातवृष्टि स्तावत्संख्यं विबुधगणितं वार्षिकं दग्धऋक्षम् // 7 // मालमादौ मस्यान्ते, चैत्रे कृष्णे निरीक्षयेत् / आर्द्रादीनि ऋक्षाणि, विशिखान्तानि कल्पयेत् // 8 // आर्द्रादिवृष्टिदिनम् अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः। स्वचक्र परचक्रं च, सप्तैता इतयः स्मृताः // 9 //