________________ 309 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। ज्येष्ठे मूलमतिक्रम्य, पूर्वाषाढादिभिः शृणु / सप्ताविंशति ऋक्षाणि, प्रथम वर्षणं बहु // 10 // तेनाढते गाढमता दढाणो 15, द 18, ढ 14, मा 25, म 25, ते 16, ता 16, घ 4, ता 20, ढ 4, गा 3, ढे 4, त 16, क 1, का 2, र 27, का 1 द्या द्रोणप्रमाणैः कथिता नृकवीन्द्रैः // 11 // लब्धा द्रोणाश्चतुर्गुण्याः, प्रकृत्यां स्थापयेद् बुधः। पञ्चभिस्तु हरेद् भागं, तस्मिन् शाब्दा विशोपकाः॥ 12 // गर्भकाले यदा विद्युद् , दृश्यते न च घोषते / द्रोणसंख्या तदा वृष्टिमध्योभयैस्तथा पुनः // 13 // साभ्रं मार्ग हिमं पौषे, माघे इमा समारुतौ। निर्वातः फाल्गुनो ज्ञेयश्चैत्रो(त्रश्च) बहुरूपकः // 14 // सुभिक्षो दिशि दुर्भिक्षो, मध्यमः शोभनः क्रमात् / निःकषस्तथेति कः सौम्यः, आषाढपूर्णिमानिलः // 15 // तथाऽऽषाढे च रोहिण्यां, न सव्यभ्रं सुदृष्टिदम् / सुभिक्षं जलपातेन, परमीतिभयं भवेत् // 16 // पञ्चमी सह रोहिण्या, सप्तमी आर्द्रसंयुता। ............."पुष्येण नवमी समा // 17 // उल्कापातं दिशां दाहं, निर्घातं पांशुवृष्टयः / इन्द्रायुधं ग्रहयुद्धं षडेते गर्भपातकाः // 18 // अतिवातमवातं वा, वातिभं तु निरभ्रता। अत्युष्णं च निरुष्णं च, षड्विधं वृष्टिलक्षणम् // 19 // शुक्त कृष्णं दिवाराांत्र, दिशि तथा च सम्मुखम्। माघे स्वातौ चतुर्मासं, चतुर्यामैर्यथाक्रमम् // 20 // नारीणां च तथा गर्भप्रमाणं दशमासिकम् / पञ्चोनशितैर्घौस्तैर्षते नात्र संशयम् // 21 // जानीते न यदा गर्भ, दृष्ट्या चेष्टां तथा तदा। कृत्तिकादीनि धिष्ण्यानि, सप्तसप्तक्रमेण तु // 22 // अमृतजलनीरसौम्यदहनपवनचन्द्रजास्तथा नाड्यः / इन्दुबुधाः शुक्रजीवाः कुजरविमन्दाधिपाः क्रमशः // 23 // रवि गुरु-भौमाः पुरुषाश्चन्द्रभृगुबुधाः स्त्रियो ज्ञेयाः / शनि-राहुनपुंसको वर्षाकाले निरीक्षणम् // 24 // स्त्री-पुंसां संगमे वृष्टि स्त्रियौ द्वौ नरौ नहि। न नपुंसकसंयोगः कुज-गुन्दुभिर्जलम् // 25 // जिट्ठस्स किण्हपक्खे, सवण-धनिट्ठाइ दोहि नक्खत्ते / जइ होइ तासु विट्ठी, ता सुभिक्खं वियाणाहि // 26 // अह मेहच्छिन्नगयणे, ता होई य मज्झिमं कालं / जइ हुंति निम्मलदिसा, ता जाणह रवरवं कालं // 27 //