________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 299 द्वौ पापी विघ्नकरौ द्वौ सौम्यौ कर्तृ-कार्ययोः सफलम् / एवं दिग्द्वयभेदं विचिन्त्य स्थितपृच्छकं स्थानात् // 7 // तथावर्तमान तिथि-वार-भयोगो, वासरया घटीदलमिश्राः / ते भवन्ति तिथि-वार-भयोगाः, सत्यमुक्तममलं मतिमद्भिः // 8 // नन्दहता गता नाड्यो, विंशतिभिर्विभाजयेत। ग्रहमुक्तयुतं लब्धं, तात्कालिका ग्रहाः स्मृताः // 9 // तत्कालचेष्टा समविग्रहं च, नक्षत्र-याम-ग्रहपृच्छकांशाः। योगास्तिथीन्दुवरदां नियोज्य, सप्ताहृतं जीवमुदाहरन्ति // 10 // चिन्ताकालो लाभो रवि-भौम-गुरु-बुध-शुक्र-शनि-चन्द्रैः। ज्ञेयाश्च राष्ट्रणा सह, पूर्वादिदिशाधिपः क्रमशः // 11 // पृच्छा दिन-वार-वामसंख्या अतीतग्रहागमनम् / भूचके भूतं कथयति स्थायी यत्र निषण्णः // 1 // पृच्छति तत्र पृष्टिस्थानाद् उदयैकग्रहागमनम् / स वर्तमानो जाई (1) // 2 // सूर्यस्थानात् प्राहरिकः, सृप्या गणयेद् भविष्यं कथयति // स्थायिनि बलिने अतीतचिन्ता जाई बलिने वर्तमानचिन्ता, प्राहरिके बलिने भविष्यचिन्ता // वसु-भूत-ऋतुश्चैव, वेद-मुनि चन्द्रमाः। शिक्षि-पक्षप्रमाणेन, सूर्यादि नीरूपयेत् // 3 // रविकर-शशि-दिश-सशर-चतुर,गुरौ युगंभृगौ / मन्दे रुद्रराहोरिन्द्रिय-कुजाग्निं-ग्रहास्तथा चाङ्काः // 4 // एवं त्रिग्रहयुक्ता अङ्का, नवभिर्युता हता बाणैः।। शिखिंभागहताः शेषैः, स्याजीव-धातु-मूलानि // 5 // वर्गागमे नगैर्भागः, अक्षरैः पञ्चभिस्तथा / स्वरैर्द्वादशभिः कुर्यात्, ततो नाम प्रसिद्ध्यति // 6 // स्थायी प्रहस्य संख्यामागे नामानि सर्वतः 14 वसुभूतादिभिश्चाङ्कः, क्षेप्यं त्रिग्रहबद्धके / शून्य-वह्नि-द्वय 230 ध्रोऽत, पादच्छायां नियोजयेत् // 8 // द्वयभूभिहृतं शेषं, नष्टलग्नं च जन्मभम् / नक्षत्र-राशि-वर्षर्तु-मास-पक्षादयस्तथा // 9 // नष्टजन्मपत्रिका // उत्तराद्युदयादीनां, वायव्यां तं ततो न्यसेत् / विदिक्प्रभृतियामार्द्ध, भ्रमते ध्रुववेलया // 1 // अधमा सृष्टिपातेन, वामपातेन मध्यमा। उत्तमा याम्यपातेन, मुखे चैवोत्तमोत्तमा // 2 // शुभ्राश्चाशुभे स्थाने मन इप्सितानि कारयेत् / अशुभा शुभे स्थाने, मृत्युहानिकरास्तथा // 3 // पृष्टिपाते समे संख्येऽशुभे शुभाश्च शोभनाः। मुखे च विषमे मध्ये, शुभाः शुभं वदन्ति हि // 4 // 90 x