________________ 300 नमस्कारव्याख्यानटीका। जीवज्ञौ प्रभातसमये, मध्याह्ने कुज-भास्करौ। अपराह्ने शशि-शुक्रौ, सन्ध्यायां शनि-राहुकौ // 5 // हीनचन्द्रे रविौंमः, सौरिस्तमग्निपातकाः। बुध-जीव सिताश्चन्द्रः, संपूर्णश्च शुभग्रहाः॥६॥ गुरु-शशाङ्क-मार्तण्डः, भूमिपुत्रः परस्परम् / मित्रत्वं बुध-शुक्रस्य, कथ्यते सौरिणा सह // 7 // मन्दं भौमं बुधं जीवं, शुक्रं सोमं च भास्करम् / नैसर्गिकं बलं तेषां, क्रमे च कवयो विदुः // 8 // जीवं तु जीव-शुक्राभ्यां, मूलं चन्द्रे बुधे तथा। धातुः शनौ रवौ भौमे, लग्नकेन्द्रग्रहैर्वदेत् // 9 // भास्कराङ्गारको रक्तौ, श्वेतौ शुक्र-निशाकरौ / सोमपुत्रं गुरुं चैव, तावुभौ पीतवर्णकौ // 10 // कृष्णं शनिश्चरं राहुं, नीलं विन्द्यात् तु वर्णकैः / वर्तुलमर्द्धचन्द्रं च, त्रिकोणं धनुराकृति // 11 // पद्मामं चतुरनं तु, दीर्घ दीर्घ च निश्चितम् / . ग्रहरूपं विजानीयादादित्यादिक्रमेण तु // 12 // जलं सोमेन वक्तव्यं, बुधे विन्द्या वनस्पतीन् / हविःस्थानं तु भौमेन, शुके जीवे च कीर्तनम् // 13 // म्लेच्छभूम्यां शनौ..., रखौ जानीहि गोकुलम्। .. निवेशं च विजानीयाद्, वाहद्वारविशेषतः॥ 14 // प्राङ्मुखो रविशुक्रेण, चन्द्रे सौरे च पश्चिमम् / / दक्षिणे बुध-सोमाभ्यां, राही जीवे तथोत्तरे // 15 // सजीवं जीवशुक्रेण, निर्जीपं क्रूरभास्करैः / चन्द्रस्तु चन्द्रपुत्रस्तु, तावुभौ मिश्रभावुकौ // 16 // लाभालाभं सुखं दुःखं, जीवितं मरणं तथा। जयं पराजयं चैव, वक्तव्यं ग्रहभावतः // 17 // सूर्यच्छन्नं धनैर्वापि, दिनमानं न बुध्यते।। तदा प्रश्नाक्षरैर्लग्नं, ग्रहान् राशौ विलोकयेत् // 18 // पूर्णिमाभ्यां हि यद् ऋक्ष, तस्मात् पञ्चदशे रविः। रवेादशमे केतुः, तस्मात् सप्तदशे बुधः // 19 // बुधाद् द्वितीये शुक्र स्यात् शुक्रादष्टमके तमः। तस्मात् पृष्टे भवेद् भौमो, ग्रहाणामेवमादिशेत् // 20 // ज्ञेयो शनि-गुरौ स्पष्टौ, यथास्थानस्थितावुभौ / एवं कुण्डलिकायां तु, स्थापयित्वाऽवलोकयेत् // 21 // विलग्नराशिगो खेटः, तत्कालच्छायया हतः। सप्तहतोऽवशिष्टश्च, स्वगुणैर्गुणयेत् ततः // 22 // बाणे-प्रति-मन्वङ्क-द्विरदौनल-शूलिनः ! पुनः सप्तं हरेद् भागं, शेषं चोद्धरितं ग्रहम् // 23 // शुभमशुभं च / 35