________________ विमाग] नमस्कार स्वाध्याय। -279 तं हत्थि पयतं विद्धं तह मयकंटएण पुणो। जीहं तस्स करिजह जेण वसे सया होइ // 80 // दाहिणहत्थे रूवं लिहह रसेणं तु देवदालीए / तस्स मज्झम्मि मंतं विलयानामं तहा लिहह // 81 // तो रूवहत्थेण पुणो दाहिणहत्थम्मि जं विलयं / सा सवइज्झत्ति विहिणा य अन्नं सयणं समुल्लवइ // 82 // "ॐ गॅसः।" कावमाच्यारसैः वर्त, सप्तधा भावयेत् तथा / कपालवसुरायोगे, घृतेन कजलं वरम् // 8 // तेन चक्षुषाऽञ्जयित्वा दर्शने वशीभवति / कपालाधोभागं कुङ्कुमेनालिप्य, तथा संयोगः पल्लवो रोधो, ग्रथनं च विभेदनम् / संपुटं षट्प्रकारं स्यात् , विज्ञेयं मन्नवेदिभिः // 83 // "हाँ देव (1), देव हौँ (2), हाँ देव ही (3), ही दे ही व ही (4), ही व ही दे ही (5), हाँ देव ही दत्त हाँ (6) // " इति षट् // 15 वश्ये विद्वेषणोच्चाटे, पूर्व-मध्याऽपरालके / सन्ध्याऽर्द्धरात्र-राज्यन्ते, मारण-शान्ति-पौष्टिकम् // 84 // वषट् वश्ये फडुच्चाटे, हुं द्वेषे पौष्टिके तथा / संघौषडाकर्षणे स्वाहा, शान्तिके घे [च] मारणे // 85 // विश्लिष्य मन्त्रबीजानि, स्वर-वर्णयुतानि च / आत्मनाम समायोज्य, चतुर्भिर्भागमाहरेत् // 86 // एकशेषे भवेत् सिद्धो, द्विशेषे साध्य उच्यते / विशेषेण सुसिद्धस्तु, अशेषे रिपुरुच्यते // 87 // सिद्धः सिद्ध्यति क्षिप्रेण, साध्यो योगव्रतादिभिः। सुसिद्धस्तत्क्षणादेव, अरिसृत्युप्रदो भवेत् // 88 // भकारैः स्तम्भितो मन्त्रः, मकारेण तु मोहितः। ककारेण तु संत्रस्तस्तेन मन्त्रो न सिद्ध्यति // 89 // शान्तिके क, विद्वेष म, उच्चाटने भव, विद्वेषे द्वयोः नाम्नोः भ,एते अक्षरा एतेषु कर्मषु न कार्याः। इति॥ नवक्खरेहि भिन्ना सिद्धा णामेण सव्वविजाणं / जा साहइ परमत्थं अण्णाणविमोहियजणस्स // 90 // जो करइ दससहस्सं जावं सिघरहि भव्वकुसुमेहिं / होमइ तह सहस्सं गुग्गुलगुलिया सुमहुरेण // 91 // तस्से य महाविजा सुमरियमित्ता य अंगफुरणेणं / साहइ कण्णे किच्चं पञ्चक्खं तं जहा होइ // 92 // अंगुट-दीव-दप्पण-खग्गे कुंते वरम्मि चित्तेसु / अववण्णिऊण साहइ सिद्धा एसा महाविजा // 93 // 20 . 36