________________ 278 नमस्कारव्याख्यानटीका। [प्राकृत सुधास्थानाद् विषस्थानं, सप्तमं ज्ञेयमन्तरम् / सुधाविषस्थानमर्दो, विषघ्नो विषवृद्धिकृत् // 62 // स्त्रियोऽप्यवश्यं वश्याः स्युः, सुधास्थानविमर्दनात् / स्पृष्टा विशेषाद् वश्याय, गुह्यप्राप्ता सुधाकला // 63 // सुधास्थानेषु नैव स्यात्, कालदंशोऽपि मृत्यवे / विषस्थानेषु दंशस्त्वप्रशस्तोऽथाऽऽशु मृत्यवे // 64 // सुधाकलास्थितान् प्राणान् , ध्यायन्नात्मनि चात्मना / निर्विषत्वं च यः स्तम्भ, कान्ति चाप्नोति दष्टकः // 65 // जिह्वायास्तालुनो योगादृमृतस्रवणं तु यत् / / विलिप्तस्तेन दंशः स्यानिर्विषः क्षणमात्रतः॥६६॥ // इति // ईप्सितं तनुप्रतिम, रक्तैरालेख्यवर्णकैः / पञ्चपुष्पाणि संगृह्य, बाणांस्तत्र नियोजयेत् // 67 // मदनेन हनेद् गुह्यं, हृदयं मोहनेन च / स्तम्भनेन हनेदुरू, कण्ठं पाशेन बन्धयेत् // 68 // जम्भनेन हनेदु कक्त्रं, पञ्चबाणांस्तथा न्यसेत् / ललाटं चाङ्कुशेनैव, ततः शीघ्रं भवेद् वशे // 69 // हकारो वह्निना युक्तो, द्वितीयस्वरसंयुतः। मदनो बिन्दुना सार्द्ध, तेन गुह्यं हनेत् सदा // 70 // हकारो वह्निसंयुक्तश्चतुर्थस्वरसंयुतः। मोहनो बिन्दुना चैव, हृदयं तेन पीडयेत् // 71 // हकारो वह्निना युक्तः, षष्ठमस्वरसंयुतः। स्तम्भनो बिन्दुना चैव, ऊरू हनेत् तथा पुनः // 72 // हकारो वायुसंयुक्तः, विसगैस्तु विशेषतः॥७३॥ पाशक एष विख्यातः, कण्ठं तेन प्रपीडयेत् // 74 // द्वितीयस्वरसंयुक्तो, जम्भनो वक्त्रगह्वरे। मदनो मोहनश्चैव, स्तम्भनः पाश एव च // 75 // जम्भनश्चैव पञ्चैते, कामबाणाः प्रकीर्तिताः। “ॐ नमो भगवति ! पुरप्रवेशिनी पुराधिपतये सर्व पुरं क्षोभय क्षोभय, ही क्षोभय, ॐ हाँ हाँ क्ली ब्लूं सः पञ्चबाणैः सर्वनृपादिकं अमुकं वश्यं कुरु कुरु हाँ हाँ हूँ ह्रयः याः पञ्चकाम30 बाणैः सर्व समस्तं नर-नारीजनं सर्वदाऽऽदेशकारिणो मे भवतु(न्तु ?) ह्रीं वषट् // " तथा तरुदेवालय सियवसहसिंग कुभारमहानईआण। पुसम्मि मट्टियाओ गिण्हह पयपंसुजुत्ताओ॥७६ // तत्थ बइल्लं काऊणं हिययमज्झम्मि तस्स अभिहाणं / निक्खिवह रोयणाए संलिहियं भुजपत्तम्मि // 77 // तिकंटएण नासं विंधेउं छुहह केसनत्थं च / / गाल हंति सत्तरयं जेण जणं किंकरं कुणइ // 78 // "ॐ कुलु कुलु मातङ्गदारिके स्वाहा / " कुंभारमट्टीयाए करब्बुयाए करेह दो घट्ट / तह सत्तुणो वि एवं तहेव विहिणा स जीवंति // 79 //