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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 257 6. प्रतीत्यसत्य : बीजी वस्तुने आश्रयीने एक वस्तुमा जुदी जुदी रीते व्यवहार करवो ते 'प्रतीत्यसत्य' छे / जेम टचली (छे श्री) आंगळीनी अपेक्षाए अनामिका आंगळी मोटी गणाय छे पण मध्यमा (वचली) आंगळी करतां ते (अनामिका) नानी पण गणाय छ। एम एक ज वस्तुमां जुदी जुदी अपेक्षाए जुदो जुदो व्यवहार ते 'प्रतीत्यसत्य' छे / 7. व्यवहारसत्य : केटलाक शब्दप्रयोगो शब्दार्थनी दृष्टिए बराबर न लागे छतां अमुक 5 विवक्षाथी बोलाता होवाथी ते प्रयोगो सत्य छ। जेमके 'पर्वत बळे छे', 'घडो झरे छे,' 'कन्याने पेट नथी', 'घेटीने वाळ नथी'-आ बधा प्रयोगोमां वस्तुतः तेम होतुं नथी छतां 'पर्वत उपरनुं घास बळे छे', 'घडानुं पाणी झरे छे', 'कन्या गर्भधारणने माटे योग्य उदरवाळी नथी', 'घेटीने कापी शकाय एटला वाळ नथी' एवा आशययी लोकव्यवहारमा ते ते प्रयोगो थाय छे तेथी ते 'व्यवहारसत्य' छ। 8. भावसत्य : एक वस्तुमां अनेक भावो (वर्ण वगेरे) रहेला होय छतां तेमांना एकाद उत्कृष्ट 10 रूपे रहेला भावने प्राधान्य आपीने वचन प्रयोग करवो-जेमके बगलामां पांचे वर्ण छे छतां 'बगलो श्वेत छे' एम कहेधुं–ते 'भावसत्य' छ / 9. योगसत्य : योग अर्थात् संबंधथी कोई व्यक्ति के वस्तुने ते नामथी ओळखवी ते 'योगसत्य' छे / जेम 'छत्र' राखनारो माणस छत्र न होय त्यारे पण छत्रना संबंधथी 'छत्री' कहेवाय छे अने 'दंड' राखनारो माणस दंडना अभावमां पण दंडना संबंधथी 'दंडी' कहेवाय छे ते 'योगसत्य' छे। 15 . 10. औपम्यसत्य : जेम तळाव समुद्र जेवू न होवा छतां 'तळाव समुद्र जेवू छे' एम तळावने समुद्रनी उपमा आपवामां आवे छे ते 'औपम्यसत्य' छ / मृषाभाषा (असत्य)ना 10 प्रकारो : कोहे माणे माया लोभे पेज्जे तहेव दोसे अ। हासभए अक्खाइय उवद्याए निस्सिआ दसमा // 274 // 1. क्रोध-निसृत असत्य : क्रोधना आवेशमां जे वाणी नीकळे ते 'क्रोध-निसृत असत्य' छे। जेमके क्रोधथी धमधमेलो पिता पुत्रने कहे के 'तुं मारो पुत्र नथी' वगेरे क्रोध-निसृत असत्य छ। अथवा क्रोधना आवेशमा साचुं-खोटुं जे कंइ वोलवामां आवे ते बधुं क्रोध-निसृत असत्य छे, कारणके ते बधुं बोलती वखते क्रोधी मनुष्यनो आशय दुष्ट होय छे / 2. मान-निसृत असत्य : पोतानी महत्ता बताववा माटे जेम कोई मनुष्य अल्प धनवाळो 25 होवा छतां कहे के 'हुं महाधनवाळो छु' ते 'मान-निसृत असत्य' छे / 3. माया-निसृत असत्य : बीजाने ठगवाना आशयथी जे साचुं-खोटुं बोलाय ते बधुं ''माया-निसृत असत्य' छे। ____4. लोभ-निसृत असत्य : लोभथी जे मिथ्या बोलवामां आवे ते 'लोभ-निसृत असत्य' छे / जेम वेपारी खोटां माप होवा छतां तेने साचां कहे छे तेम / 30 5. प्रेम-निसृत असत्य : अति रागने लईने 'हुं तमारो दास छु' वगेरे जे बोलवामां आवे ते 'प्रेम-निसृत असत्य' छ। 6. द्वेष-निसृत असत्य : द्वेषथी इर्ष्यालु मनुष्यो गुणवानने पण 'आ निर्गुण छे' वगेरे कहे ते द्वेष-निसृत असत्य' छ / 20
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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