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________________ [प्राकृत 256 ध्यानविचारः। तेणे आ दमदंत मुनि छे एम सांभळ्युं त्यारे रोषे भराईने तेमना प्रति बीजोरं फेंक्युं / स्वामीनी आ वर्तणूकनी देखादेखीथी सैनिकोए तेमना प्रति पथ्थरो फेंक्या अने क्षणवारमा तेओ तेमां दटाई गया / केटलाक समय बाद पांडवो पाछा फर्या त्यारे तेमने दुर्योधननी गेरवर्तणूक सांभळी तिरस्कार कर्यो / मुनि भगवंत उपरना पथ्थरो दूर कर्या अने तेमना शरीरने तेल चोळ्युं / तेमनी क्षमा याची। दमदंत मुनि 5 दुर्योधन द्वारा करायेला उपद्रव अने युधिष्ठिरादि द्वारा करायेली भक्ति—बन्ने तरफ समभाव धारी रह्या हता। परिशिष्ट 7 भाषाना 4 प्रकार छे : सत्य, मृषा, सत्यामृषा अने असत्यामृषा / सत्य भाषाना 10, मृषा भाषाना 10, सत्यामृषाना 10 तथा असत्यामृषाना (व्यवहारभाषाना) १२–एम कुल 42 प्रकारो श्री दशवैकालिक नियुक्ति वगेरेमां जणाव्या छे / ते संबंधी पृ. 246 मां 'जणवय' वगेरे पांच गाथाओ 10 आपेली छे / ते* अर्थ सहित नीचे मुजब छे : सत्य भाषाना 10 प्रकारो: जणवय-सम्मय-ठवणा नामे रूवे पडुच्च सच्चे अ। ववहार-भाव-जोगे दसमे ओवम्मसच्चे अ // 273 // 1. जनपदसत्य : कोंकण वगेरे देशोमां पाणीने माटे ‘पय', 'पिच्च', : उदक', 'नीरम्' 15 वगेरे जुदाजुदा शब्दो वपराय छे / आ शब्दोथी ते ते जनपदोमां-देशोमां इष्ट अर्थनी प्रतिपत्ति थती होवाथी लोकव्यवहार चाले छे। तेथी ते शब्दो 'जनपदसत्य' अर्थात् ते ते देशने आश्रयीने 'सत्य' कहेवाय छ। 2. सम्मतसत्य : कुमुद, कुवलय, उत्पल, तामरस ए बधां एकसरखी रीते कादवमां उत्पन्न थाय छे। तो पण गोवाळो सुद्धां (अर्थात् आबालगोपाल) कमलने ज पंकज कहे छे। आ रीते लोकोमां 20 'कमल' अर्थमां ज 'पंकज' शब्द सम्मत छे तेथी ते 'सम्मतसत्य' कहेवाय छ। 3. स्थापनासत्य : तेवा प्रकारनी अंकरचना तथा सिक्का वगेरे जोईने जे भाषा उच्चारवामां आवे ते 'स्थापनासत्य' छे / जेमके एकडानी आगळ बे शून्य उमेरीए तो सो अने त्रण शून्य उमेरीए तो हजार कहेवाय छे। तेमज नाणां उपर ते ते छाप प्रमाणे रुपियो, पांच रुपिया वगेरे कहेवाय छे। 4. नामसत्य : कोई मनुष्य कुल विस्तारतो न होवा छतां 'कुलवर्धन' नाभे ओळखाय, 25 धनने वधारतो न होय छतां 'धनवर्धन' कहेवाय, यक्ष न होवा छतां 'यक्ष' कहेवाय / आवा बधा अर्थरहित नामोना प्रयोगो ते 'नामसत्य' कहेवाय छे। 5. रूपसत्य : वेश प्रमाणे गुण न होवा छतां तेवा प्रकारचें रूप धारण कर ते 'रूपसत्य' छे। ते संबंधी वचन पण रूपसत्य कहेवाय छे, जेम के कोई कपटी साधुना वेशमां होय त्यारे तेने साधु कहेवामां आवे ते 'रूपसत्य' छे / 30 * आवश्यकसूत्रनी हरिभद्रसूरिरचितवृत्ति तथा पन्नवणा (प्रज्ञापना) सूत्रनी मलयगिरिसूरिरचिंत वृत्तिने आधारे अहीं अर्थ लख्यो छ।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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