________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 255 परिशिष्ट 6 पृ. 241 मां भवनयोगनुं निरूपण करती वखते 'प्रणिधान', 'समाधान', 'समाधि', तथा 'काष्ठा' ना संबंधमां अनुक्रमे 'प्रसन्नचंद्र राजर्षि', 'भरतचक्रवर्ती,' 'दमदंतमुनि' तथा पुष्पभूति आचार्यनां दृष्टांतो छे एम जणाव्युं छे। ते पैकी पुष्पभूति आचार्य- दृष्टांत 1 ला परिशिष्ट मां आवी गयुं छे। बाकीनां त्रण दृष्टांतो नीचे मुजब छे: प्रसन्नचंद्र राजर्षि प्रसन्नचंद्र राजर्षिना पितानु नाम सोमचंद्र हतुं अने मातानुं नाम धारिणी हतुं। पोताना बाळकुंवरने गादी आपी तेमणे दीक्षा लीधी हती। एक वखत राजगृहीना उद्यानमां कायोत्सर्ग करता हता। ते वखते तेमणे सांभळ्यु के चंपानगरीनो दधिवाहन राजा तेनी नगरीने घेरो नाखीने पडयो छे अने पोतानो पुत्र जे हजु बाळक छे, तेने मारीने राज्य लई लेशे। आधी राज्य तथा कुमार प्रत्ये मोह उत्पन्न थतां अने तेमनी 10 रक्षानो विचार करतां करतां मानसिक युद्ध खेलतां थोडीवारमा तेमणे सातमी नर्कने योग्य कर्मो एकठां कर्यां हतां / परंतु पाछी आ मोहनी विचारश्रेणी तेमणे रोकी अने शुभ विचारश्रेणी उपर आरूढ थतां केवळज्ञान प्राप्त कयें। आ प्रमाणे प्रणिधान उपर प्रसन्नचंद्र राजर्षिनुं दृष्टांत छ / भरत चक्रवर्ती 15 भरत महाराजा ए भगवान ऋषभदेवना सौथी मोटा पुत्र अने प्रथम चक्रवर्ती हता। एक वखत आरीसाभवनमा पोताना अलंकृत शरीरने जोता हता। तेवामां एक आंगळीमांथी एक वींटी नीकळी गई। एटले ते शोभारहित लागी / आ जोईने तेमणे बीजा अलंकारो पण उतार्या / त्यां तो आलुं शरीर शोभारहित लागवा मांड्युं / आथी 'अनित्यं संसारे भवति यन्नयनगनम् / संसारमा जे वस्तुओ आंखोथी देखाय छे, ते बधी नाशवंत छे / ' एवी अनित्य भावना भाववा लाग्या अने केवळज्ञान उत्पन्न थयुं। 20 आ प्रमाणे निमित्त मळतां शुभ ध्यानमा प्रवृत्ति करी। दमदंत मुनि हस्तिशीर्ष नामना नगरमां श्री दमदंत नामना राजा राज्य करता हता। आ बाजु हस्तिनापुर * नगरमां पांच पांडवो राज्य करता हता / दमदंत राजा अने पांडवोने आपसमां वैर हतुं / एक वखत दमदंत राजा जरासंधनी पासे (सेवा करवा माटे) राजगृही नगरे गयो हतो। ते 25 तकनो लाभ लई पांडवोए दमदंत राजाना देशने लूंटयो अने बाळ्यो / काळांतरे दमदंत राजा पाछो आव्यो / तेणे पोताना देशनी खराब स्थिति जोई बदलो वाळवा हस्तिनापुरने घेरो घाल्यो। पांडवोने तेणे कहेवराव्युं के " हवे बहार नीकळो; शियाळियानी जेम शुं भराइ बेठा छो ?" पांडवो बहार नीकळ्या नहि तेथी ते पोताने देश चाल्यो गयो / .. कामभोगथी निर्वेद पामीने केटलांक वर्षो बाद तेणे दीक्षा लीधी। हवे दमदंत मुनि एकाकी 30 विहार करता हस्तिनापुर पधार्या अने नगरनी बहार प्रतिमा ध्याने रह्या / यात्राने माटे नीकळता युधिष्ठिरादि . पांडवोए ज्यारे तेमने खबर पडी के आ दमदंत मुनि छे त्यारे वंदन कर्यु / त्यारबाद दुर्योधन आव्यो अने