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________________ 250 ध्यानविचारः। [प्राकृत एक दिवस ते साधुओअरसपरस विचारवा लाग्या के 'कोण जाणे शुं हशे ? आपणे तपास करीए / ' तेओमांथी एक साधु ओरडाना बारणे उभा रही अंदर जोवा लाग्या / घणीवार सुधी निरीक्षण कर्यु, परंतु आचार्य महाराज तो हालता नथी, बोलता नथी, फरकता नथी अने उच्छ्वास-निःश्वास पण लेता मूकता नथी; कारणके ते अवस्थामा श्वासोच्छवास बहु सूक्ष्म होय छ / तेमणे आ हकीकत बीजा साधुओने कही। ते गुस्से भराया अने पुष्यमित्रने कहेवा लाग्या 'हे आर्य ! आचार्यश्री काळधर्म पाम्या छे छतां तमे अमने जणावता नथी। पुष्यमित्र मुनिए जवाब आप्यो के 'आचार्य महाराज काळधर्म पाम्या नथी पण ध्यानमा छे, माटे खलेल न करो।' त्यारे बीजा साधुओ कहेवा लाग्या के 'आ वेषधारी साधु वेतालने साधवानी इच्छावाळो जणाय छे; कारणके आचार्य महाराज पूर्ण लक्षणवाळा छ। एटले एवी इच्छाथी ज ते 10 आपणने साची हकीकत जणावतो नथी। आज रात्रिए जुओ शुं परिणाम आवे छे / ' ते बधा साधु पुष्यमित्र मुनि साथे झघडो करवा लाग्या। पुष्यमित्र मुनिए तेमने वार्या, त्यारे तेओए बधा समाचार राजाने आपीने तेमने त्यां लाव्या। साधुओ राजाने कहेवा लाग्या के 'आचार्यश्री काळधर्म पाम्या छे छतां आ वेषधारी साधु तेमने बहार काढवा देतो नथी।' राजाए पण आचार्य महाराजने जोया। तेने पण खात्री थई के आचार्य 15 महाराज काळधर्म पाम्या छ। तेथी राजाने पुष्यमित्र मुनिना वचन उपर विश्वास बेठो नहीं। शिबिका तैयार कराववामां आवी। एटले पुष्यमित्र मुनिने चोक्कस लाग्युं के आचार्यश्रीनो अकाळ विनाश थशे। आचार्य महाराजे अगाउ पुष्यमित्र मुतिने कही राखेखें हतुं के मारी ध्यानस्थ अवस्थामा आगनो के बीजो कोई उपद्रव आवी पडे तो मारा अंगूठानो स्पर्श करजे। 20 पुष्यमित्र मुनिए आचार्य महाराजना अंगूठानो स्पर्श को एटलें ध्यानमांथी जागृत थयेला आचार्य महाराज कहेवा लाग्या के 'हे आर्य! मने केम खलेल करी?' ___ पुष्यमित्र मुनि बोल्या, 'जुओ, आ शिष्योए आपना माटे शुं कर्यु छ ?' पछी आचार्य महाराजे ते बधा साधुओने खूब ठपको आप्यो। आवा ध्यानमा प्रवेश करवाथी योगो संगृहीत थाय छ।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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