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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 249 स्थामालम्बनानि 8 "बंधणे-संकमणुव्वदृणा य अपवट्टणा उदीरणयो। उवसामणा निहत्ती निकायणां च त्ति करणाई॥" [-- कम्मपयडी, गाथा 2] उत्साहस्य ऊर्ध्वलोकवस्तुचिन्ता। पराक्रमस्य अधोलोकचिन्ता। चेष्टायाः तिर्यग्लोकचिन्तनम् / शक्तेः तत्त्व-परमतत्त्वचिन्ता / सामर्थ्यस्य सिद्धायतनसिद्धस्वरूपचिन्तालम्बनम् // इति ध्यानविचारः॥ स्थामयोगनां आठ आलंबनो नीचे मुजब छे-- (1) बंधनकरण, (2) संक्रमकरण, (3) उद्वर्तनाकरण, (4) अपवर्तनाकरण, (5) उदीरणाकरण, (6) उपशमनाकरण, (7) निधत्तिकरण अने (8) निकाचनाकरण / ऊर्ध्वलोकमांनी वस्तुओनी चिंता ते उत्साहनुं आलंबन छ / अधोलोकमांनी वस्तुओनी चिंता ते 10 पराक्रमनुं आलंबन छ / तिर्यग्लोकमांनी वस्तुओनी चिंता ते चेष्टानुं आलंबन छ / तत्त्व अने परमतत्त्वनी चिंता ते शक्तिनुं आलंबन छ / सिद्धोनुं स्थान अने सिद्धोना स्वरूपनी चिंता ते सामर्थ्यनुं आलंबन छ / परिशिष्ट 1 आचार्य पुष्पभूति अने मुनि पुष्यमित्रनी कथा . पृ. 227 मां 'भावथी कला' नी जे व्याख्या छे तेनुं अहीं आपेल कथा समर्थन करे छ। अत्यंत 15 अभ्यासना कारणे देश, काळ तेमज करणनी अपेक्षाए स्वयमेव ज चढे अने बीजा वडे उताराय ते समाधिने भावकला कहेवामां आवे छे / आचार्य पुष्पभूतिनी आवी समाधि तेमना शिष्य पुष्यमित्र मुनिए उतारी हती। तेमनी कथा 'श्री आवश्यक नियुक्ति'नी श्री हारिभद्रीया टीकामां पृ. 722 मां 'ध्यानसंवरयोग'ना प्रसंगमां छे। तेनो सार नीचे मुजब छे : ___ 'शिंबावर्धन' नामना नगरमां 'मुंडिकाम्रक' नामे राजा हतो। त्यां श्री पुष्पभूति नामना 20 आचार्य महाराज पधार्या / तेमना उपदेशादिथी उपशांत बनेलो ते राजा श्रावक थयो। ते आचार्यमहाराजना पुष्यमित्र नामना एक बहुश्रुतज्ञानी शिष्य के जे आचारमां शिथिल हता ते अन्यत्र रहेता हता। एक वखत आचार्य महाराजने 'महाप्राण' ध्यान जेई 'सूक्ष्म ध्यान' करवानो विचार थयो। आ ध्यानमां ज्यारे प्रवेश करवामां आवे त्यारे एवी रीते ‘योग निरोध' करवामां आवे छे के कांइ वेदन ज 25 थाय नहि / ते आचार्य महाराज पासे जे साधुओ रहेला ते अगीतार्थ हता। तेथी तेमणे पुष्यमित्र मुनिने बोलाव्या। ते आव्या अने आचार्य महाराजे बधी हकीकत कही / तेणे पण स्वीकार कर्यो। एटले आचार्य महाराज एक निर्व्याघात ओरडामां ध्यान करवा लग्या। त्यां पुष्यमित्र बीजा साधुओने अंदर जवा देता न होता। अने कहे के “अहीं रह्या रह्या ज वंदन करो। आचार्य महाराज व्याकुल छे अर्थात् खास काममां छे।" 32 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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