________________ 248 ध्यानविचारः। [प्राकृत - "पुढवि-दग-अगणि-मारुय चणस्सइऽणंता पणिंदिया चउहा। वणपत्तेया विगला दुविहा सव्वे वि बत्तीसं // " तत्र पृथिव्यप्-तेजो वायनन्तकायिकाः सूक्ष्म-बादरपर्याप्ताऽपर्याप्तभेदाच्चतुर्धा / संश्यसंज्ञिपर्याप्ताऽपर्याप्तभेदात् पञ्चेन्द्रियाश्चतुर्धा / प्रत्येकवनस्पति-विकलेन्द्रियाः पर्याप्ताऽपर्याप्तभेदाः। वैक्रियं पञ्चविंशतिधा। सप्तानां नारकभेदानां पर्याप्तापर्याप्तभेदेन चतुर्दश / वायुकायिकानां पञ्चेन्द्रियतिरश्चां मनुष्याणां च एकैकम् / देवानां चतुर्विधानां पर्याप्तापर्याप्तभेदेनाष्टौ–एवं 25 / आहारकं चैकविधमेव / एवं कायत्रयस्यापि भेदाः 58 / एतदन्तर्गतत्वात् तैजसस्यापि 58 / / एवं कार्मणस्यापि 58 / –एवमालम्बनानि 290 // अत्र मनःप्रभृतीनि योगप्रासादारोहणालम्बनानि यथा वा रङ्गदानाय वस्त्रे पाशः क्रियते। वीर्ययोगालम्बनानि-ज्ञानाचार 8, दर्शनाचार 8, चारित्राचार 8, तप आचार 12, वीर्याचार ३६–एवम् 72 / पृथ्वी, अप् , तेज, वायु, साधारण वनस्पति अने पंचेन्द्रिय ए बधा चार चार प्रकारे छ। प्रत्येक वनस्पति अने विकलेंद्रिय (बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय तथा चउरिन्द्रिय) बब्बे प्रकारे छे। बधा मळीने 32 भेदो थाय छे / [644 = 24; (1+ 3)2= 8; 24 +8= 32 भेदो थाय छे] अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, 15 तेउकाय, वायुकाय अने अनंतकाय-ए पांचे सूक्ष्म तेमज बादर अने पर्याप्त तेमज अपर्याप्त एम चार भेदोथी वीश प्रकारे छे। पंचेंद्रियना संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त अने अपर्याप्त एम चार भेदो छ। प्रत्येक वनस्पतिकाय तेमज विकलेंद्रिय–अर्थात् बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय ते चारेना पर्याप्त अने अपर्याप्त एम बे भेदो होवाथी आठ प्रकारे छ। (20+4+8=32) वैक्रिययोग 25 प्रकारे छे / नारकी (जीवो) ना सात भेदो छे। ते दरेकना पर्याप्त अने अपर्याप्त 20 बे भेद होवाथी बधा मळीने चौद भेदो थाय छ / वायुकायनो एक भेद छ। पंचेंद्रिय तिर्यंच अने मनुष्यनो एकेक भेद छ। चार प्रकारना (भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक) देवोना दरेकना पर्याप्त अने अपर्याप्त बे भेद होवाथी एकंदरे आठ प्रकार थाय छ। एम बघा मळीने 25 प्रकारो थाय छे / (14+1+2+8=25) आहारक एक प्रकारनो छ। ए रीते त्रणे काय (औदारिक, वैक्रिय, आहारक)ना मळीने 58 25 भेदो थाय छे। तेजस्काय तेमां अंतर्गत होवाथी तेना पण भेदो छ / ए ज प्रकारे कार्मण शरीरना पण 58 भेदो छ। कुल मळीने 58+58+58+58+58=290 आलंबनो छे। जेम वस्त्रमा रंग करवा माटे प्रथम पाश आपवामां आवे छे तेम अहीं योगरूप महेल उपर चढवा माटे मन वगेरे आलंबनो छ / वीर्ययोगनां आलंबनो--ज्ञानाचार 8, दर्शनाचार 8, चारित्राचार 8, तपाचार 12, वीर्याचार 30 ३६–कुल 72 प्रकारना छ /