________________ 246 [प्राकृत ध्यानविचारः। . एवं करणानि 96 // करणैर्गुणिता ध्यान(२४)मेदाः 2304 / एते करणयोगैः षण्णवतिसंख्यैर्गुणिताः 221184 / भवनयोगैरप्येवं भेदाः, उभयं 442368 // उक्तं च"चत्तारि सयसहस्सा बायालीसं भवे सहस्साई / तिन्नि सया अडसट्रा नेया छउमत्थझाणाणं // " 'योगो विरियं० 'त्यादि यो योग उक्तस्तस्यालम्बनानि 290 / 10 आ रीते करणना 1248 =96 प्रकार छे / तेनी (करणना 96 भेदो) साथे ध्यानना 24 . भेदोने गुणतां 96424 =2304 थाय छे। तेने 96 करणयोग वडे गुणतां 221184 भेदो थाय छे। ए ज रीते 2304 ने 96 भवनयोग वडे गुणतां 221184 भेदो थाय छे / आम बन्ने मळीने 442368 प्रकारो थाय छे / का छे के-चार लाख, बेतालीस हजार, त्रणसो ने अडसठ-ए छद्मस्थना ध्यानना प्रकारो जाणवा। 15 योगनां आलंबनो ___योगो विरियं० इत्यादि गाथा द्वारा जे योग कहेवामां आव्यो तेनां आलंबनो 290 छ / तेमां मनोयोग आ प्रमाणे समजवो: जणवय सम्मय-ठवणा नामे रूवे पडुच्च सच्चे अ। ववहार-भाव-जोगे दसमे ओवम्मसच्चे अ // 273 // कोहे माणे माया लोमे पेज्जे तहेव दोसे / / हासभए अक्खाइय उवधाए निस्सिआ दसमा // 274 // . उप्पन्नविगयमीसग जीवमजीवे अ जीवअज्जीवे / तहऽणंतमीसगा खलु परित्त अद्धा अ अद्धद्धा // 275 // आमंतणि आणवणी जायणि तह पुच्छणी अ पन्नवणी / पञ्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा अ // 276 // अणभिग्गहिआ भासा भासा अ अभिग्गहम्मि बोद्धव्वा / संसयकरणी भासा वायड अव्वायडा चेव // 277 // -श्री दशवैकालिक नियुक्ति। पृ. 416-19. 1. आ गाथाओना अर्थ माटे जुओ परिशिष्ट नं. 7. 30 2. 275 मी गाथा सिवायनी आ बधी गाथाओ श्री पन्नवणासूत्रना 11 मा भाषापदमा 165 मा सूत्रमा पण छे।