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________________ विभाग] . नमस्कार स्वाध्याय / _ निर्मतीकरणमित्यादि 8 // मतिरवग्रहो दशधा // 10 // निर्वितर्कीकरणमित्यादि 8 // ईहोत्तरकालभावी, अवायात् पूर्व ऊहो वितर्कः / “अरण्यमेतत् सविताऽस्तमागतः" इत्यादि // 11 // उपयोगो वासनारूपस्तदभावो निरुपयोगीकरणम् // 12 // महा-परमादिविशेषणानि तथैव जघन्यसंयोगजभेदानि भावनीयानि / करण-भवनभेदोऽपि 5 तथैव 96 // (10) निर्मतीकरण वगेरे 8 प्रकारो छ। . 'मति' शब्दथी दश प्रकारनो अवग्रह समजवो। (पांच इंद्रिय, छटुं मन-एटलानो अर्थावग्रह, तथा मन अने चक्षु सिवायनी बाकीनी चार इंद्रियोथी थतो व्यञ्जनावग्रह-एम दश प्रकार थाय छे) // 10 // (11) निर्वितकाकरण वगेरे 8 प्रकारो छ। 10 ‘वितर्क'–जे ईहा पछी अने अवाय (अपाय) पूर्वे तर्क थाय ते वितर्क / जेम अरण्यमेतत् सविताऽस्तमागतो, ___न चाधुना संभवतीह मानवः। प्रायस्तदेतेन खगादिभाजा, भाव्यं रतिप्रियतमारिनाम्ना // पत्र-७८ // -विशेषावश्यकभाष्य, श्रीकोट्याचार्य टीका --आ अरण्य छे, सूर्य अस्त पाम्यो छे, अत्यारे अहीं कोई मानव न होई शके, आ कारणोथी घणे भागे आ पदार्थ पक्षीओवाळो अने रतिना प्रियतम कामदेवना शत्रु शिव-महादेवना नामवाळो पदार्थ (स्था) होवो जोईए // 11 // (12) निरुपयोगीकरण वगेरे आठ प्रकारो छ / 20 * वासनारूप जे 'उपयोग' तेनो अभाव ते निरुपयोगीकरण // 12 // आना महा, परम आदि विशेषणोयी तेमज तेना जघन्य आदि संयोगथी थता भेदो समजी लेवा / पहेलां कह्या प्रमाणे 'उपयोग'ना 'करण' अने 'भवन' ना भेदो पण समजी लेवा / 15 1 कोई माणस जंगलमा गयो होय अने त्यां ज सांज पडी गई होय ते वखते दूरथी झाडनुं ढूढं देखातुं होय त्यारे प्रथम तो स्वाभाविक रीते एना मनमा शंका थशे। “आ हूलु हशे के पुरुष हशे?" पछी ते तर्क-वितर्क करवा लागे छ: 25 “एक तो आ जंगल छे अने वळी अत्यारे सूर्यास्त थई गयो छे। माटे आ स्थाने अने आ समये मनुष्य संभवी शके नहि। एटले आ पक्षीओवाळु वृक्षनु ठूठं होवू जोईए।" . आ ज वातने आ श्लोकमां आलंकारिक शब्दोमां रजू करी छ। संस्कृतमां ढूंठाने 'स्थाणु' कहेवामां आवे छे अने महादेवनुं बीजं नाम पण 'स्थाणु' छ। महादेवे रतिना पति कामदेवने बाळीने भस्मीभूत को होवाथी महादेव कामदेवना शत्रु छे / एटले रतिना पतिना शत्रुना समान नाम (स्थाणु) वाळा तरीके झाडना ढूंठानो अहीं उल्लेख कयों छे। 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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