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________________ 244 ध्यानविचारः। [प्राकृत निर्विज्ञानीकरणमित्यादि 8 विज्ञानाभावरूपं, यथा सुषुप्तावस्थायां न किमप्यनुभूतमपि वस्तु वेद्यते, एवमत्र जाग्रतोऽपि वस्तुविज्ञानाभावः // 5 // निर्धारणीकरणमित्यादि 8 धारणाऽविच्युतिरूपा, तदभावः // 6 // उक्तं च"चित्तं' तिकालविसयं चेयेणपञ्चक्ख सैन्नमणुसरणं / विनाणणेगमेय कालमसंखेयरं धरणा॥ [-दशवैकालिकभाष्य, गाथा-१९ पृ. 125 अ] विस्मृतीकरणमित्यादि 8 // स्मृतिर्धारणाया द्वितीयो भेदः। यतः-अविच्युति-स्मृति-वासना-मेदात् त्रिधा धारणा वर्ण्यते // 7 // निर्बुद्धीकरणमित्यादि 8 // बुद्धि: औत्पातिक्यादिश्चतुर्धाऽवायरूपा, अवायस्तु निश्चय उच्यते // 8 // निरीहीकरणमित्यादि 8 // ईहा विचारणा, किमयं स्थाणुः पुरुषो वेति // 9 // / (5) 'निर्विज्ञानीकरण' वगेरे 8 प्रकारो छ। 'निर्विज्ञानीकरण' विज्ञानना अभावरूप छ। अर्थात् जाग्रत अवस्थामां अनुभवेली कोई पण वस्तुनु निद्रावस्थामा वेदन होतुं नथी। तेम आ करण वखते जाग्रत अवस्थामां पण वस्तुना विज्ञाननो अभाव होय छे // 5 // 15 (6) 'धारणा' ना निर्धारणीकरण वगेरे 8 भेद छ। ___ 'धारणा' एटले (वस्तुना ज्ञाननी) अविच्युति। तेनो अभाव ते निर्धारणीकरण / कयुं छे के: 'चित्त' भूत, भविष्य अने वर्तमानकाळ एम त्रणे काळना अर्थाने सामान्यथी जाणे छ। 'चेतना' प्रत्यक्ष वर्तमानकालीन अर्थेने जाणे छ। 'संज्ञा' ते अनुस्मरणने कहे छे के जे पदार्थ पहेलां जोयो होय। 'विज्ञान' अनेक प्रकारचें छे। अनेक धर्मवाळा पदार्थमां ते ते विशिष्ट धर्मरूपे जे अनेक 20 प्रकारचें ज्ञान थाय ते 'विज्ञान' कहेवाय छ। 'धारणां' असंख्यात अथवा संख्यात काळ संबंधी होय छे // 6 // (7) विस्मृतीकरण वगेरे आठ प्रकारो छ। 'स्मृति' शब्दथी अहीं धारणानो बीजो भेद समजवो; कारण के धारणाना त्रण भेदो छ / अविच्युति, स्मृति अने वासना। अहीं बीजो भेद विवक्षित छे // 7 // 25 (8) निर्बुद्धीकरण वगेरे आठ प्रकारो छ / बुद्धि शब्दथी अवायस्वरूप औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मणिकी अने पारिणामिकी एम चार प्रकारनी बुद्धि लेवी। निश्चयने अवाय कहेवामां आवे छे। तेनो अभाव ते निर्बुद्धीकरण // 8 // (9) निरीहीकरण वगरे 8 प्रकारो छ। 'ईहा' एटले विचारणा, अर्थात् आ ढूंढुं छे के पुरुष छे एवी जे विचारणा जागे ते ईहा। तेनो 30 अभाव ते निरीहीकरण // 9 // 1. धारणाना त्रण भेद छे : अविच्युति, वासना अने स्मृति। तेमां अविच्युति अने स्मृति अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होय छे, ज्यारे वासना केटलाक जीवोने असंख्यात वर्षो सुधी अने केटलाकने संख्यात वर्षो सुधी होय छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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