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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 243 मनसोऽशनं चिन्तनम् , तदभावोऽनशनम् / उत् प्राबल्येन गतमिव चिन्ताऽभावान्नष्टमिव मनो यस्यां सा उन्मना, उन्मना क्रियतेऽनेन उन्मनीकरणं मनोमृत्युरित्यर्थः, एतज्जघन्यम् / द्वितीयमेतदेव मध्यम, तृतीयमुत्कृष्टं, चतुर्थं जघन्यादिभेदत्रयसलीनतात्मक / भवनचतुष्टयमप्येवम् / नवरं उपेत्य यत् क्रियते आभोगपूर्वकं तीर्थङ्करादिवत् [तत् ] करणम् / यत् त्वनाभोगेनैव स्वयमुल्लसति मरुदेव्यादिवत् तद् भवनम् // 1 // द्वितीयं चित्तविषयं करणमष्टधा—निश्चितीकरणमित्यादि 4, निश्चित्तीभवनमित्यादि / चित्तं-त्रिकालविषयं चिन्तनम् , तदभाव उच्छ्वासाद्यभावहेतुः // 2 // तृतीयं चेतनाविषयं निश्चेतनीकरणमित्यादि 8 सर्वशरीरगतचेतनाद्यभावरूपं रागाद्यभावहेतुः // 3 // एवं निःसंशीकरणमित्यादि 8 आहारादिगृद्धयभावरूपम् / अनेन प्रमत्तादीनामाहारं गृह्णतामपि गृद्धयभावः // 4 // 5 10 चिन्तन ए मननो खोराक छ / ते चिंतननो अभाव ते मन- अनशन छ। जेमां प्रबळताथी मन चाल्युं गयुं होय अर्थात् चिंताना अभावथी जाणे मन नाश पाम्युं होय एवी अवस्थाने उन्मना अवस्था कहे छ। एवी अवस्था जे. ध्यान वडे कराय तेने 'उन्मनीकरण' कहेवाय छे। बीजा शब्दोमां कहीए तो जेना मन- मृत्यु ते जघन्य उन्मनीकरण छे। आ ज उन्मनीकरण जो मध्यमकोटिनुं होय तो बीजा प्रकारमा अने उत्कृष्ट कोटिनु होय तो त्रीजा प्रकारमा अने जघन्य आदि त्रणेना मिश्रणवाळु होय तो चोथा प्रकारमां 15 समजबुं। भवनना चार प्रकार पण ते ज रीते समजवा। . जेम तीर्थंकर भगवंतो उपयोगपूर्वक करे छे तेम उपयोगपूर्वक कराय ते 'करण' कहेवाय छे। अने मरुदेवीमातानी जेम उपयोग (प्रयत्न) कर्या विना पोतानी मेळे ज जे थाय ते ‘भवन' कहेवाय छे // 1 // (2) चित्तविषयक करणना 8 प्रकारो छ / 20. (1) निश्चित्तीकरण, (2) महानिश्चित्तीकरण, (3) परमनिश्चित्तीकरण, (4) सर्वनिश्चित्तीकरण (5) निश्चित्तीभवन (6) महानिश्चित्तीभवन (7) परमनिश्चित्तीभवन (8) सर्वनिश्चित्तीभवन / चित्त एटले त्रण काळ संबंधी चिंतन / तेना अभावथी उच्छ्वास वगेरेनो अभाव थाय छे // 2 // (3) 'चेतना'ना निश्चेतनीकरण वगेरे 8 प्रकारो छ। निश्चेतनीकरण' समग्र शरीरनी अंदर चेतनाना अभावरूप छे अने ते राग वगेरेना अभावY 25 कारण छे // 3 // (4) निःसंशीकरण वगेरे 8 प्रकारो छ। - 'निःसंज्ञीकरण' एटले आहार आदिनी लोलुपतानो अभाव / आथी प्रमत्त आदि योगीओ आहार प्रहण करे छे छतां पण तेमां तेमने लोलुपतानो अभाव होय छे // 4 // .
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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