________________ 242 ध्यानविचारः। [प्राकृत एवं चतुर्विंशतिश्चतुर्गुणिता जाताः 96 // एते मरुदेव्या इव स्वभावेन जायमाना भवनयोगाः॥ एत एवोपेत्याभोगपूर्वकं क्रियमाणत्वात् करणयोगाः॥ करणानि तु 96 इत्थं ज्ञेयानि चित्तं चेयण सन्नी विनाणं धाराँ सई बुद्धी। इहाँ मई विर्यका उवओगे मणाइ छन्नउइ // मणाइ इति मनःप्रभृतीनि, मन एतेषामादौ कर्तव्यम्। तत्राद्यं मनोविषयं करणमष्टधा-उन्मनीकरणं', महोन्मनीकरणं, परमोन्मनीकरणं, सर्वोन्मनीकरणं', उन्मनीभवनं', महोन्मनीभवन, परमोन्मनीभवनं , सर्वोन्मनीभवनम् // आ प्रकारे चोवीशने चारे गुणतां 2444 =96 प्रकारो थाय छे। आ ज 96 प्रकारो मरुदेवा मातानी जेम स्वाभाविक रीते-सहज स्वभावे थाय तो ते 'भवनयोग' कहेवाय छे। अने ए ज 96 प्रकारो जाणी जोईने थाय तो ते 'करणयोग' कहेवाय छे। 96 करणोनुं स्वरूप (1) मन (2) चित्त (3) चेतना (4) संज्ञा (5) विज्ञान (6) धारणा (7) स्मृति (8) बुद्धि 15 (9) ईहा (10) मति (11) वितर्क (12) उपयोग-आ बार वस्तु संबंधी 96 करण थाय छे। 'मणाइ' एटले मन / आ बधां करणोमां मनने प्रथम गणतुं। (1) 'मन' विषयक करणना 8 प्रकारो छ। (1) उन्मनीकरण (2) महोन्मनीकरण (3) परमोन्मनीकरण (4) सर्वोन्मनीकरण (5) उन्मनीभवन (6) महोन्मनीभवन (7) परमोन्मनीभवन (8) सर्वोन्मनीभवन। 20 1. उदाहरण तरीके : 10 योग योग महायोग परमयोग प्रणिधान 25 समाधान समाधि प्रणिधान समाधान समाधि काष्ठा प्रणिधान समाधान समाधि काष्ठा काष्ठा वीर्य वीर्य महावीर्य परमवीर्य प्रणिधान प्रणिधान / समाधान समाधान . समाधि समाधि काष्ठा आ ज रीते स्थाम आदि भेदो समजवा / 84344 =96 / प्राणिधान समाधान समाधि काष्टा काष्ठा 35