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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 241 अधोनयनं कर्मणः संस्थितकुतुपात् तैलस्येव, घण्टिकायां वाऽमृतकलायाः // 5 // खस्थानस्य कर्मणः शोषणं तप्तायसभाजनस्थजलस्येव // 6 // जीव-कर्मणोवियोगं प्रत्याभिमुख्यजननं, तिलानामिव तैलवियोजनं यथा घाणकेन निपीडनम् // 7 // साक्षाजीव-कर्मणोवियोगकरणं खल-तैलयोरिव // 8 // एतेषामष्टानामपि प्रत्येकं त्रैविध्यं योग-महायोग-परमयोगादिभेदात्-जघन्यो योगः, मध्यमो 5 महायोगः, उत्कृष्टः परमयोगः। एवं वीर्य-परमवीर्यादयोऽपि वाच्याः -एवं भेदाः 24; तेऽपि प्रत्येकं . चतुर्धा-प्रणिधान-समाधान-समाधि-काष्ठासमाधिभेदात् / तत्र प्रणिधानमशुभेभ्यो निवर्तनम् 1 / समाधानं शुभेषु प्रवर्तनम् 2 / रागद्वेषमाध्यस्थ्यालम्बनं समाधिः 3 / ध्यानेन मनस एकाग्रतयोच्छ्वासादिनिरोधः काष्ठा 4 / प्रसन्नचन्द्र-भरतेश्वरैदमदन्त-पुष्पभूतयो यथाक्रममत्र दृष्टान्ताः॥ 10 (5) पराक्रम : कुडलामांथी जेभ तेलने नीचे रेडवामां आवे अथवा अमृतकळामांथी जेम अमृत घण्टिकामां (पडजीभमां) झरे तेम (ऊंचे गयेला) कर्मोने नीचे लई जवां ते पराक्रम कहेवाय छे / (6) चेष्टा : तपेला लोखंडना भाजनमा रहेढुं जल जेम सुकाई जाय छे तेम पोताना स्थानमां रहेलां कर्मोने सूकवी नाखवां ते 'चेष्टा' कहेवाय छ / (7) शक्ति : तलमाथी तेलने छुटुं पाडवा माटे जेम तलने घाणीमां पीलवामां आवे छे तेम जीव 15 अने कोनो वियोग करवा माटे अभिमुख थq ते शक्ति कहेवाय छे। (8) सामर्थ्य : जेम खोळ अने तेल जुदां पाडवामां आवे छे तेम जीव अने कर्मोनो जे साक्षात् वियोग करवो ते 'सामर्थ्य' कहेवाय छ। आ आठे भेदोना दरेकना 'योग', 'महायोग' अने ‘परमयोग' वगेरे त्रण प्रकारो छे : जघन्य होय ते 'योग' कहेवाय छे, मध्यम होय ते 'महायोग' कहेवाय छे अने उत्कृष्ट होय ते ‘परमयोग' 20 कहेवाय छ। आ प्रमाणे वीर्य, महावीर्य, परमवीर्य वगेरे प्रकारो समजवा / आ रीते 843=24 भेदो थाय छे / ते दरेकना पण 'प्रणिधान', 'समाधान', 'समाधि' अने 'काष्ठा' एम चार प्रकारो छे।। ... 'प्रणिधान' एटले अशुभ कार्योमांथी निवृत्ति लेवी। 'समाधान' एटले शुभ कार्योमा प्रवृत्ति करवी। 'समाधि' एटले राग अने द्वेष (ना प्रसंग)मां माध्यस्थ्य भाव राखवो / 'काष्ठा' एटले ध्यान वडे मननी एकाग्रताथी उच्छ्वास आदिनो निरोध करवो। उपर वर्णवेल 'प्रणिधान' 'समाधान' 'समाधि' तथा 'काष्ठा' ना संबंधमां अनुक्रमे प्रसन्नचंद्र राजर्षि, भरत चक्रवर्ती, दमदंतमुनि तथा पुष्पभूति आचार्यनां दृष्टांतो छ। (जुओ परिशिष्ट 6) 1. परमाक्षरमात्रा ते ज अमृतकळा कहेवाय छ। अन्ये परां शिखां प्राहुरूधिो व्यापिकां किल / परमाक्षरमात्रा सा सैवामृतकलोच्यते // -उपमितिभवप्रपञ्चाकथा प्रस्ताव-८ श्लोक-७४६. 2. योगना योग, महायोग अने परमयोग। वीर्यना वीर्य, महावीर्य अने परमवीर्य / स्थामना स्थाम, महास्थाम अने परमस्थाम। -आ रीते दरेकना त्रण-त्रण भेदो समजवा / 25 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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