________________ 240 [प्राकृत ध्यानविचारः। भवनयोगादिस्वरूपं चेदम् "जोगो' विरियं थामो उच्छाह परक्कमो तहा चेट्टा। सत्ती सामत्थं चिय, चउगुण बारटु छन्नउई // '' जीवप्रदेशानां कर्मक्षयं प्रति व्यापारणं नियोगिनामिव जीवेन राज्ञेव योगः // 1 // जीवप्रदेशैः कर्मणः प्रेरणं ध्यानाग्नौ चेटिकयेव कचवरस्य // 2 // जीवप्रदेशेभ्यः क्षपणार्थं कर्मप्रदेशानामाकर्षणं दन्तालिकयेव कचवरस्य // 3 // जीवप्रदेशेभ्यः कर्मणामूर्ध्व नयनं नलिकयेव जलस्य // 4 // Сл भवनयोगादिनुं स्वरूप भवनयोगादिना 8 भेद नीचे मुजब छ : 10 (1) योग, (2) वीर्य, (3) स्थाम, (4) उत्साह, (5) पराक्रम, (6) चेष्टा, (7) शक्ति, (8) सामर्थ्य / ते दरेकना प्रणिधानादि चार भेदो छ / अने ते दरेकना जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट एम त्रण प्रकारो 'छे / एटले कुल 84443=96 मेद थाय छे। भवनयोगादिनुं स्वरूप आ प्रमाणे छ : (1) योग : राजा जेम पोताना अधिकारीओने कार्यशील बनावे तेम जीव आत्मप्रदेशोने कर्मना 15 क्षय माटे कार्यशील बनावे ते योग कहेवाय छ। (2) वीर्य : जेम दासी द्वारा कचरो बहार नखावी देवामां आवे छे तेम जीव आत्मप्रदेशो द्वारा कर्मोने ध्यानाग्निमां नाखवा माटे प्रेरणा करे ते 'वीर्य' कहेवाय छ / (3) स्थाम : जेम दंताळीथी कचराने खेंचीने लाववामां आवे छे तेम जीव आत्मप्रदेशोमांथी कर्म-प्रदेशोने खपाववा माटे खची लावे ते 'स्थाम' कहेवाय छे / / 20 (4) उत्साह : जेम नळी वडे पाणीने ऊंचु चढाववामां आवे छे तेम आत्मप्रदेशमांथी कर्मने ऊंचा लई जवा ते उत्साह कहेवाय / 2 1. मूळमां 'बारटु छन्नउई' पाठ छे / ए नीचेनी गणत्रीथी संगत थई शके एम लागे छ : जघन्यादि त्रण मेदो अने ते दरेकना प्रणिधान वगेरे चार भेदो-आ रीते 12 भेद थया। अने योग वगेरे दरेकना ते 12 भेदो होवायी 1248 96 भेदो थाय छ। 2. श्री शिवशर्माचार्य रचित 'कम्मपयडी' गाथा-३ नी श्रीमलयगिरिसूरिरचित टीकामांथी उद्धृत करेली गाथा अने श्री चन्द्रमहत्तर रचित 'पंचसंग्रह ' द्वितीय खंडना मूळनी चोथी गाथा तेना चोथा पादना फेरफार साथे आ रीते छे-- "जोगो विरियं थामो उच्छाह परक्कमो तहा चेट्ठा / सत्ति सामत्थं चिय जोगस्स हवंति पज्जाया // 4 // योग वगेरे जे अहीं प्रकारो बताव्या छे ते 'पंचसंग्रह'कारे योगना पर्यायवाची नामो तरीके जणाव्या छ /